कविता : समझदार हो के जीना… हमें भाता नहीं है
है उम्र गुज़ारी हमने,
किताबों के सफ़र में !
जिन्दगी को सुलझाना,
हमें आता ही नहीं हैं !!
न जाने कितने चेहरे,
हैं नकाब ओढ़े बैठे !
दिखावट-भरे ये चेहरे,
दिल पढ़ पाता ही नहीं हैं !!
काश ! फिर से जा पाते,
बचपन के हसीं सफ़र में….
समझदार हो के जीना,
हमें तो भाता ही नहीं है !!
अंजु गुप्ता
वाह वाह !
शुक्रिया जी