कविता

मैं मेहनतकश

  प्रचंड गर्मी हो या कड़क शरद, सिर पर सजा कर मेहनत की ओढ़नी, और चेहरे पे हँसी का गहना, ऊँचे भवनों की… नींव सजाते दिख जाऊंगी तुमको कहीं कभी भी … मैं मेहनतकश !! घूल-गर्द से सना बदन, आँखों में सजाए सपनों की चमक, कंधों पर लेकर विकास का भार, पक्की सड़कों का … […]

बाल कविता

मिट्ठू

मिट्ठू हूं मैं मीठा बोलूं डाल डाल पर मैं हूं डोलूं लाल चोंच मेरी लगे है प्यारी कंठ मेरे है काली धारी। भाषा कोई हो सीख मैं जाऊं पक्षियों का पंडित मैं कहलाऊं सुन मेरी तोती तूं जीती मैं हारा यही तरु कोटर बनेगा अब घर हमारा ! — अंजु गुप्ता “अक्षरा”

लघुकथा

लघुकथा: जुबां

  “तेरी बहू के संस्कारों की दाद तेरी पड़ेगी। शादी के पांच साल बाद भी पल्ला सिर से नहीं हटा है।” प्रीतो से मिलने आई उसकी सहेली शांतिदेवी सुमन की फोटो देखते हुए बोलीं। इससे पहले कि प्रीतो कुछ ज़बाब देती, शांतिदेवी की उपस्थिति से अंजान, सुमन कमरे में आते ही चिल्लाई, “हद होती है […]

कविता

गर तुम होते मेरे साजना

गर तुम होते मेरे साजना न जाने क्या कर जाती इक ही जीवन में… संग तेरे कितने जीवन जी जाती !! करती मैं, सोलह श्रंगार फिर खुद ही मैं शरमाती इक ही जीवन में… संग तेरे कितने जीवन जी जाती !! कभी प्रेम बरसाती, बन सावन कभी छुई – मुई मैं बन जाती ! इक […]

क्षणिका

क्षणिका: सीमाएं

अक्सर आदतन/ तथाकथित बुद्धिजीवी / सुशोभित करते हैं / अपनी बुद्धिमता से/ चमचों और भक्तों की सीमाएं / और …इनकी सीमाएं?? अंजु गुप्ता ‘अक्षरा’

लघुकथा

लघुकथा : सोच

वे बोले, “रामदेव के प्रोडक्ट खराब हैं।” मैं : हम नहीं खरीदते। वे : दंत कांति तो बढ़िया है। मैं : हम वो भी नहीं लेते। वे : इतना बड़ा एंपायर खड़ा कर लिया है इसने और प्रोडक्ट भी बड़े महंगे हैं। मैं : कंपीटीशन बहुत है, अगर प्रोडक्ट लोगों पसंद नहीं आएंगे, तो वे […]

क्षणिका

वोट पर क्षणिकाएं

-1- चुनावी रण में दिखें/ शराब-शबाब हथियार/ पर… जागरूक मतदाता/ न करे वोट बेकार!   -2- बैलट पर बुलेट/ है लोकतंत्र पर चोट/ नेताओं की नियत में/ दिखता है खोट!   -3- हाथ में वोट/ या हाथ पर वोट / …बहुत फर्क है/ होती थी अब तक/ हकों पर चोट!   अंजु गुप्ता ‘अक्षरा’

लघुकथा

लघुकथा : सम्पन्नता

जब तक माँ थी: “यह माँ भी ना! जो भी घर आता है, उसे कुछ न कुछ दे कर ही भेजती हैं। चाहे रिश्तेदार हो या मांगने वाला।” गुस्से में नेहा बोली। “अब तो मैं भी थक चुका हूं। समझती ही नहीं कि पैसा लुटाने से घर में संपन्नता नहीं आती।” सुर में सुर मिलाते […]

लघुकथा

इलाज़

“अरे रामलाल! अभी-अभी टैक्सी से आने वाली लड़की “शीला” ही है ना?” रोहित ने पूछा। “हां भई! मिश्रा जी की बिटिया शीला ही है। रोज़ इसी टैक्सी से आती-जाती है।” चटकारे लेते हुए रामलाल बोला। “बड़ी स्टाइलिश हो गई है … ” कुटिल नजरें अभी भी उसी दिशा में उलझी हुई थीं। “थोड़ी तो शर्म […]

क्षणिका

रोटी पर क्षणिकाएं

रोटी अजब नज़ारा/ गरीब को… न वक्त पे रोटी/ अमीर को… न रोटी को वक्त अब बतलाओ … कौन बेचारा? ****** 2 ***** भूख, गरीबी और उत्पीड़न, “रोटी” से जुड़े/ मुद्दे तो हैं… पर छुपाए जाते हैं ! सत्ता के शतरंजी खेल में अक्सर/ नए मुद्दे बनाए जाते हैं ! ! ******** 3******** गरीबी उन्मूलन […]