कविता : न छेड़ो जख्मों को
न छेड़ो जख्मों को,
लगेंगे फिर से रिसने !
वो जुदा हो रहें हैं हमसे,
पर वह इसे मानते नहीं हैं !!
अक्स थे कभी हम उनके,
पर हाल अब ये देखो !
मिलते हैं हमसे वे ऐसे,
कि जैसे पहचानते नहीं हैं !!
दे तो दें सदा हम,
गर इक बार वे मुड़ के देखें !
पर जतलाने हैं वे ऐसे,
कि जैसे हमें जानते नहीं हैं !!
अंजु गुप्ता