धुंध और धूप का रिश्ता
धुंध और धूप का रिश्ता विचित्र है
दोनों शब्द ‘ध’ वर्ण से सृजित हैं
यद्यपि दोनों का कोई मेल नहीं है
फिर भी वे मानो मित्र हैं.
धुंध को अपना जलवा बिखेरने देने के लिए
धूप तनिक विनम्र हो जाती है
धूप को अपने शबाब पर आने देने के लिए
धुंध रास्ता देती जाती है.
धुंध शिष्य है, तो धूप गुरु है
धुंध अंत है, तो धूप शुरु है
धुंध को देखकर विश्वास होता है धूप ज़रूर आएगी
धुंध सिकंदर है, तो धूप पुरु है.
धुंध अज्ञान है, धूप है ज्ञान,
धुंध छंटे तो चमके भान,
शनैः-शनैः गुरु धुंध-अज्ञान हटाकर
बढ़ाए शिष्य का मान-सम्मान.
खिड़की के शीशे या स्विमिंग पूल की ग्रिल पर
चांदी की तरह चमकती धुंध बताती है
चांदनी धुंध में नहाई है
ओस-कणों को मोती की तरह चमकाती हुई धूप दर्शाती है
आने वाली बेला भी सुहानी है.
धुंध से न घबराने वाले
धूप में भी सुख के सुरूर को पा जाते हैं
धूप से न घबराने वाले
धुंध में भी सुकून के सुमन खिला जाते हैं.
धुंध और धूप का रिश्ता विचित्र है
दोनों ‘ध’ वर्ण से निःसृत हैं
यद्यपि दोनों का रास्ता एक नहीं है
फिर भी वे मानो मित्र हैं.
सुन्दर रचना के लिए बधाई
प्रिय अर्जुन भाई जी, एक सटीक व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.
प्रिय अर्जुन भाई जी, एक सटीक व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.
बहुत खूब आदरणीया, सुन्दर सृजन
प्रिय सखी नीतू जी, एक सटीक व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया.
प्रिय सखी नीतू जी, एक सटीक व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया.
लीला बहन , धुंद और धुप का रिश्ता, कविता नहीं बल्कि मास्टर पीस है .मज़ा आ गिया पढ़ कर ,इस को लिखने की बहुत बहुत वधाई हो .
लीला बहन , धुंद और धुप का रिश्ता, कविता नहीं बल्कि मास्टर पीस है .मज़ा आ गिया पढ़ कर ,इस को लिखने की बहुत बहुत वधाई हो .
प्रिय गुरमैल भाई जी, किसी रचना को मास्टर पीस दिखाने वाला नज़रिया जिसके पास हो, मज़ा उससे दूर रह ही नहीं सकता. एक सटीक व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.
प्रिय गुरमैल भाई जी, किसी रचना को मास्टर पीस दिखाने वाला नज़रिया जिसके पास हो, मज़ा उससे दूर रह ही नहीं सकता. एक सटीक व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.
श्रद्धेय बहनजी ! धुंध और धुप का रिश्ता बड़ा ही विचित्र है । कभी धुंध को फैलने देने के लिए धुप विनम्र हो जाती है तो कभी धुप को पसरने देने के लिए धुंध अपना दामन समेटने लगती है । इसी के साथ ही धुंध रूपी अज्ञानता धुप रूपी ज्ञान के आते ही नदारद हो जाती है । एक और सुन्दर रचना के लिए आपका आभार ।
प्रिय राजकुमार भाई जी, आपने रचना का सारगर्भित सार ग्रहण कर लिया है और हमें भी बताया है. एक सटीक व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.
प्रिय राजकुमार भाई जी, आपने रचना का सारगर्भित सार ग्रहण कर लिया है और हमें भी बताया है. एक सटीक व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार.
श्रद्धेय बहनजी ! धुंध और धुप का रिश्ता बड़ा ही विचित्र है । कभी धुंध को फैलने देने के लिए धुप विनम्र हो जाती है तो कभी धुप को पसरने देने के लिए धुंध अपना दामन समेटने लगती है । इसी के साथ ही धुंध रूपी अज्ञानता धुप रूपी ज्ञान के आते ही नदारद हो जाती है । एक और सुन्दर रचना के लिए आपका आभार ।