ग़ज़ल
दिल चाहता है कासिद जब लाए कोई पैगाम,
लिखा हो तेरे हाथों से और बस हो मेरे नाम
हम अलमस्त फकीरों को ना दुनिया की परवाह,
दीवाने हैं दीवानों को दुनिया से क्या काम
अहद-ए-वफा ने महफिल में कर दिया हमें खामोश,
मंज़ूर किया हमने हँस के तेरा हर इक इल्ज़ाम
नहीं जानते थे कल तक हमको अपने हमसाए भी,
मशहूर हो गए घर-घर में हम-तुम होकर बदनाम
गली-गली लेकर फिरता हूँ मैं टूटा-थका बदन अपना,
बरसों हो गए मिला नहीं इक पल का भी आराम
अँधेरे से जी घबराया जब अपना तनहाई में,
तेरी याद के जुगनू से तब लिया शमा का काम
— भरत मल्होत्रा
वाह वाह ! बहुत खूब !!
वाह वाह ! बहुत खूब !!