दोहे
पहन मुखौटे झूठ के, करते लोग कमाल ।
जो दिल छलनी कर रहे, वही पूछते हाल ।।
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रसना में रस घोलिए, मत करिए रसहीन ।
रसना में रस ना रहें, सब कुछ लेती छीन ।।
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धनिक जनों को देखिये, कितना है अभिमान ।
बात करें तो यूं लगे, करते ज्यों अहसान ।।
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काया सुन्दर पाइ के, क्यूँ इतना इतराय ।
यह तन माटी का बना, माटी में मिल जाय ।।
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तेरा मेरा क्यों करे,क्या तू लेगा पाय ।
समय निकलता हाथ से,अंतकाल पछताय ।।
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हरि ही जग का सार है, बाकी सब बेकार ।
हरि सुमिरन में मन लगा, तज दे विषय विकार ।।
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बहुत अच्छे दोहे !
आपकी हर रचना में आज के जीवन की सच्चाई बयान होती है । आपका इस अल्प उम्र में इन सच्चाइयों से रूबरू होना आश्चर्यजनक है । उज्जवल भविष्य की शुभकामनाओं के साथ बेहतरीन रचना के लिए आभार ।
आपकी हर रचना में आज के जीवन की सच्चाई बयान होती है । आपका इस अल्प उम्र में इन सच्चाइयों से रूबरू होना आश्चर्यजनक है । उज्जवल भविष्य की शुभकामनाओं के साथ बेहतरीन रचना के लिए आभार ।
बहुत बहुत आभार आदरणीय ।