गज़ल—–उनके अश्कों को
उनके अश्कों को पलकों से चुरा लाये हैं |
उनके गम को हम खुशियों से सजा आये हैं
आप मानें या न मानें यह तहरीर मेरी ,
उनके अशआर ही ग़ज़लों में उठा लाये हैं|
उस दिए ने ही जला डाला आशियाँ मेरा ,
जिसको बेदर्द हवाओं से बचा लाये हैं |
याद करने से भी दीदार न होता उनका,
इश्क में यूंही तड़पने की सजा पाए हैं|
प्यार में दर्द का अहसास कहाँ होता है,
प्यार में ज़ज्ब दिलों को ही जख्म भाये हैं|
प्रीति है भीनी सी बरसात क्या आलम कहिये,
रूह क्या अक्स भी आशिक का भीग जाए है|
श्याम करते हैं सभी शक मेरे ज़ज्वातों पे,
हम से ही दर्द के नगमे जहां में आये हैं|
— डॉ श्याम गुप्त
धन्यवाद विजय जी ,
बढ़िया ग़ज़ल !
बढ़िया ग़ज़ल !
धन्यवाद