गरीबी
अमीरो के साथ तो सभी घुमते
गरीबो को कहॉ कोई देखता है
जहॉ पैसो के बोलबाला होता
वही अपने होने का दावा दिखता है
साथ देते है सभी पैसोवाले को
बिन पैसे को आज कौन पुछता है
गरीबी भी एक बिमारी है
जो सभी रोगो पर भारी है
सभी प्रताडित करते है इन्हे
अपने पैरो के धूल समझते है
गरीब हीन दृष्टी से देखे जाते
ये कैसा मानव समाज का रीत हैं|
निवेदितै चतुर्वेदी
गरीबी जैसी बीमारी कोई हो ही नहीं सकती .सारी जिंदगी मैंने तो अपने बराबर के या मुझ से नीचे गरीब को ही देखा है .ऐसी बात नहीं है किः मैंने अमीरों के साथ नाता नहीं किया लेकिन ज़ादा तो उन से मैं दूर ही रहा हूँ क्योंकि उन से मिल कर मेरे मन की शांती भंग हो जाती है .अमीरों का भी कोई कसूर नहीं क्योंकि उन की सोसाएटी ही इलग होती है ,इस लिए वोह उसी तरह के हो जाते हैं .एक किस्सा मुझे याद आ गिया ,एक दफा अमीरों के घर जाने का अवसर मिला ,वोह सभी अमीरी की बातें कर रहे थे ,फिर एक बोला, यार जी चाहता है एक घर मौन्त्रीआल में ले लें और एक स्पेन में ले लें, होटलों में रहने को जी नहीं चाहता .मेरा जी चाहता था वहां से भाग जाऊं लेकिन मुझे वहां बैठना पड़ा .एक बात यह भी है किः जो शख्स दुसरे देशों में मकान लेने को बोल रहा था ,उस का घर ऐसा था जैसे रानी का घर था लेकिन जब वोह बैंक्त्प्त हुआ तो उस ने ट्रेन के नीचे आ कर जान दे दी और उस का माकान बैंक ने ले लिया .मेरा विचार है किः अमीरों की और देखने की जरूरत ही नहीं है .फरीद का एक शलोक है ” फरीदा ! देख पराई चोपड़ी ,ना तरसाइए जी ,रुखी मिस्सी खाके ठंडा पानी पी “