कविता

भिगी भिगी रातो मे

वो भिगी भिगी रातो में
तेरे आने की आहट
मेरे कानो तक जैसें ही पहूँची
जैसे लगा खुशियों का
भंडार मिल गया
कर गये थे वादा
दो चार दिन का
बिता कर आये न जाने
कितना महिना
एक एक पल काटती थी
तेरे यादो में
मिठे ख्वाब मे भी
शिर्फ तुझे ही देखती थी
ए राते भी मुझे खुब डराते थे
जब मुझे अकेले में पाते थें
दिन तो मानो कटता ही नही था
तन्हा हो ये दिल रोता रहता था
बस तेरा न होना
यही खटकता रहता था
आज फिर से बहार आया है
साथ मे खुशिया हजार लाया है
तुम जो आयें मानो
उपवन मे फूल खिला हैं|
     निवेदिता चतुर्वेदी

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४