कहानी

तुम बस मेरी हो मां 

            प्यारी मां ! आज तुम्हारी बहुत याद आ रही है।कैसी हो? ये पूछना अब समय से परे है, क्योंकि तुम अब जिस दुनिया में रहती हो उसे स्वर्ग कहते हैं।वहां सुख का साम्राज्य है। फिर भी तुमसे बात करने का मन करता है , लगता है ऊपर से ही सही तुम हम सबको देखती रहती हो।

          तुम ऊपर से जरूर देखती हो क्योंकि जब से तुम इस दुनियां से गयी हो ,हर समय यही लगता है उस असीम शांति मे भी तुम मुझे और सभी भाई बहनों को देखती रहती हो ।

       तभी तो आज तक मेरी उस पगडंडी से रास्ता भटकने या बदलने की कभी इच्छा नहीं हुई जिस पर तुमने बचपन से हमें चलना सिखाया।

तुम्हारी मजबूत, पथरीली “संस्कारों की पगडंडी”जिस पर चलना हर आम आदमी के लिए परेशानी भरा होता है। मेरे लिए भी रहता है पर अब लगता है तुम्हारे जाने के बाद उस पगडंडी पर चलते रहना ही मेरे जीवन का लक्ष्य है।

         तुम्हारी वो सभी बातें जो तुम हमको समझाने और सिखाने के तौर पर बताती थी,रह रह कर कानों में गूंज ही जाती है और मैं तेज रफ्तार जिंदगी में भी फिर से उसी समय में पहुंच जाती हूं, जहां तुम मेरे साथ थी।

आज ही शीशे के सामने जब मैं खड़ी हुई तो अचानक मुझमें तुम दिखने लगी।

वैसे भी अब सब कहने लगे है कि अब मेरी शक्ल सूरत तुम से बहुत मिलने लगी है।

 लगता है समय फिर खुद को दोहरा रहा है। तुम ने शायद नानी से जो सीखा था वो अच्छी मां के तौर पर हम भाई-बहनो को समय-समय पर प्यार से, दुलार कर , कभी डांटकर, कभी कभी थप्पड़ जड़ कर ,सजा देकर सिखाया।

             आज मैं भी दो बेटियों की मां हूं, तुम्हारी ये बात कि मां बाप बच्चों के आदर्श होते हैं मैं कभी भूल नहीं पाती हूं। आज जब मैं खुद मां के गौरवशाली पद पर आयीं हूं तब से अपने बच्चों के लिए आदर्श बनने की कोशिश में लगी हूं।

एक बात बताऊं मां,मैंने भी अपनी बेटियों को हर सीख हर संस्कार तुम्हारी तरह खुद अपने जीवन में अपनाकर उन को निभा कर जीवन्त दिखाये है। जिससे वो भी मेरी तरह ही सीख सकें जैसे हर बात तुम ने खुद अपने ऊपर लागू करके मुझे सिखायी थी।

काश जब तुम साथ थी तो मैं कह पाती __मां! मेरे जीवन के हर पड़ाव का आदर्श तुम हो, मैं हर मोड़ पर तुम्हारे जैसी व्यवहारिक, मीठा बोलने वाली सबको अपना बनाने वाली बनना चाहतीं हूं।

आज जब पीछे मुड़कर तुम्हारी संघर्ष यात्रा को देखती हूं कि किस तरह तुमने पापा की फैक्ट्री बंद हो जाने पर घर चलाने के लिए स्कूल खोला और उसे चलाकर घर को ही नहीं पूरे परिवार की जीवन नैया को भंवर से निकला दिया।

      आज एक राज की बात बताऊं, तुम्हें देख कर ही मैंने एम एस सी तक पढ़ाई करी, ये सोचा कि जिसकी मां ने लखनऊ विश्वविद्यालय से इतिहास में एम ए किया, वो भी उस जमाने में एम ए तक पढ़ाई करने वाली स्त्रियां उंगली पर गिनी जा सकती थी, उसकी बेटी को तो अपनी मां जितना तो पढ़ ही लेना चाहिए।

  मां क्या कहूं, आज तुम्हारी यादों का सिलसिला एक खूबसूरत एलबम बन गया है जिसमें हर फोटो की अपनी एक कहानी है।

कल की बात ले लो , स्कूल में वार्षिक परीक्षा चल रही है।जब कमरे में एक लड़की को बड़ी अजीब तरीके से पैन पकड़ कर लिखते देखा तो भी तुम याद आ गयी,है तो कितनी छोटी सी बात 

    लगा इस बच्ची को शायद मेरी मां जैसी मां नहीं मिली । जिसने कैसे सही तरीके से पैंसिल पकड़ते हैं, नहीं सिखाया।

फिर वही तुम्हारी यादे मीठी फुहार बन कर मुझे भिगो गयी । कैसे एक अक्षर भी ठीक से नहीं लिखा हो तो तुम पूरी लाइन मिटवा कर दोबारा लिखवाती थी।

तुम्हारा श्रुतिलेख लिखवाना, किताब पढ़वाना सब,सब याद आ गया। इसी लिए तो मां को प्रथम गुरु कहा गया है।

         मैं भगवान को हमेशा धन्यवाद देती हूं कि मुझे तुम्हारी बेटी बनाया जिसने आजीवन अच्छा इंसान बनने की कोशिश की और मुझे भी इंसान बना दिया।

मां सच कहूं तो मेरे जीवन की धुरी हो तुम, जिसके चारों ओर मेरी दुनिया है।मन तो कर रहा है यूं ही तुम से बातें करती रहूं, ये पत्र कभी खत्म ही न करु , यूं ही तुम्हारी यादों में डूबी रहूं।

तुम्हारी यादों में –  तुम्हारी बेटी 

— शुभ्रा राजीव 

शुभ्रा राजीव

मूल नाम शुभ्रा भार्गव निवासी। भीलवाड़ा राजस्थान शिक्षा। बी एस सी ,बी एड एम ए हिन्दी कार्यरत। वरिष्ठ अध्यापिका गणित शिक्षा विभाग राजस्थान रुचि लिखना पढ़ना