कविता

कविता : पति पत्नी कहां होते है

हम कमरे में—————-
अब पति पत्नी कहां होते है?
बिस्तर तो वही है,
पर एैसा लगता है जैसे——–
अब उसपे दो अज़नबी सोते है।
टटोलना मुमकिन नही भीतर का सन्नाटा,
बस काम से लौटते थके कदम,
ही अब हमारे भीतर होते है।
फिर खिड़की से बाहर महानगर के,
न थमने वाली चुभती चिखती आवजे,
और हमारी शादी की सालगिरह पे,
वे गमले में लगाई,
बिल्कुल अपने जीवन की तरह,
कि नागफनी को एकटक देखते है,
फिर उदास टावल को उठा,
हम हाथ मुँह धोते है।
अब तो ये भी याद नही,
कि कब हम एक साथ बैठकर चाय पिये थे,
और किस बात पर हम साथ खिलखिलाये थे,
अब तो सामने है बस एक तन्हा खालि कप,
जिससे अब केवल होंठ भिगोते है,
और लेते है एक थकी साँस,
अब तो रिश्ते को जीते नही बस ढ़ोते है।
हम कमरे में————
अब पति पत्नी कहां होते है?।
##‪#‎एक‬ जिवंत रिश्ते के निरस हो जाने का आधुनिक दर्द।

रंगनाथ दुबे

रंगनाथ दुबे

जन्मदिन-10-7-1982 शिक्षा----एम.ए.,डि.एच.एल.एस. संम्प्रति----इटीनरेंट टीचर समेकित शिक्षा। प्रकाशन----अमर उजाला,अपने यहाँ के विथिका कालम से दैनिक जागरण में रचनाये व व्यंग्य लेख का प्रकाशन,सच का हौसला,तरुणमित्र,देश की उपासना,व करुणावती साहित्य धारा के अलावे अन्य पत्र-पत्रिकाओ से रचनाओ का प्रकाशन। mo.no.----7800824758 ईमेल एड्रेस[email protected]