कविता

कविता : सपने

कुछ सहेज रखे है मैंने
अपने अन्तःमन के कोने
में सपने
पर आज न जाने क्यों
रह-रह के ये चंचल सपने
झांकने लगे है निर्भय होकर
शायद वर्षों से छिपे सपने
अब हो गए है जवाँ और,
भरना चाहते है अपने तमन्नाओं
की उड़ान
पर डर लगता है, कहीं बाहर
आते ही कोई कतर न दे इनके
ख्वाइशों के पंख
मेरे खूबसूरत सपने जो हकीकत
बनने को है बेताव
कहीं ये पूरा होने से पहले ही
अपना दम न तोड़ दे

नहीं नहीं, मैं जी नहीं सकती
इन सपनो के वगैर
ये सिर्फ सपने नहीं, बल्कि
मेरे जीने का है आधार

जो हर नई सुबह एक उम्मीद
की आस लिए अपनी आँखे
खोलती है कि, आज नहीं तो
कल जरूर पुरे होंगे सपने

हाँ जानती हूँ मैं,
रात के अँधरे में संजोये सपने
शायद सच नहीं होते
लेकिन इतना तो सच है कि
ये सपने मेरे अपने है और मुझे
हक़ है अपने सपने पर

जो दिन के उजाले में भी होता है
साथ मेरे, और कराता है पल-पल
ये आभास मुझे
कि, करना है तुम्हे सपने साकार

ठहरने नहीं देता मुझे कभी भी
होकर हतास
फिर चल पड़ती हूँ आगे
लेकर अपने सपने को साथ
देने उसे हकीकत का नाम।

बबली सिन्हा

*बबली सिन्हा

गाज़ियाबाद (यूपी) मोबाइल- 9013965625, 9868103295 ईमेल- [email protected]

3 thoughts on “कविता : सपने

  • अमित कु. अम्बष्ट 'आमिली'

    सुंदर रचना

    • बबली सिन्हा

      शुक्रिया अमित जी

  • अनिल सिन्हां

    बबली जी, सपने ही ताो है जाो जीवन में एक नया उमंग, एक नया जाोश भरता रहता है… आपके सपने जरूर पूरे हाोंगे …. हां कभी कभी थाोड़ा वक्त निकल जाता है ताो कभी हम आगे निकल जाते हैं… परंतु अतीत में झांकने पर अहसास हाोता है ये जाो आज हकीकत है यही ताो कुछ वक्त पहले तक सपने थे …. सपने पूरे हाोते ही सपने, सपने नहीं हकीकत हाो जाते हैं और हम एक नया सपना संजाोने लगते हैं… अच्छी कविता…..

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