माँ
माँ की सेवा करना ही सबसे बड़ा पुण्य का काम है
इन्हीं के आँचल तले ही अब शीतलता की छांव है
माँ के पास जो सुख भोगे कहीं नहीं मिल पाते हैं
यह कैसी मजबूरी है इनको छोड़कर दूर रहते हैं
आती है जब माँ की यादें आँसू झर-झर गिरते हैं॥
रोने का मन करता लेकिन दिल रोकर रह जाता है
अपना ही दिल अपने को यू बार -बार समझाता है
कष्टों को झेलती होगी वो कैसे पीड़ा सहती होगी
सुनता हूँ कष्टों को जब आँखों से आँसू छलकते हैं
आती है जब माँ की यादें आँसू झर-झर गिरते हैं॥
स्नेहमयी आँखों से कैसे ममता को समझाती होगी
ना जाने कब किस हाल में घर पर वो बिताती होगी
दु:ख में भी खुश होती है जब पास मैं उसके जाता हूँ
वात्सल्य की बाढ़ में पल भर के लिए बहने लगते हैं
आती है जब माँ की यादें आँसू झर-झर गिरते हैं॥
________________रमेश कुमार सिंह /१९-०४-२०१६
वर्तनी की त्रुटियों के होने पर भी अच्छी रचना.
सादर धन्यवाद आदरणीय!!सुधार करने की कृपा करें!!
कर दिए सुधार. मैंने जो ईमेल भेजी है उसे पढने का कष्ट करें.
कर दिए सुधार. मैंने जो ईमेल भेजी है उसे पढने का कष्ट करें.