देखूँ आप को ही कण कण में विराजमान,
आपकी ही श्रुति का श्रवण करें कान हैं ।
चित्त में हो आपका ही चिंतन प्रत्येक क्षण,
वाणी से हो सदा आपका ही गुणगान है ॥
विनती है आपसे विशेष हे दया के सिंधु !,
कृपा करके दीजिये मुझे ये वरदान है ।
लिखने को कलम उठाये जब भी जितेन्द्र,
कविता में लिखे आपका ही कीर्तिगान है ॥
अच्छा कवित्त !
प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद !