कविता

कर्म प्रकाशा

है हर तरफ़ प्रपंच और
झूठ का हीं मंच पर
अडिग रहो,
अथक बढ़ो ,
रुको नहीं संदेह में ।

घोर तिमिर जो सामने,
आत्म बल कुलबुलाने
प्रचंड रुप
तुम धरो,
धराशायी अन्धकार हो ।

संशय में भविष्य जो
लड़खड़ाये हर स्वपन तो,
कर्म हीं प्रधान हो
सुदृढ़ विश्वास हो ,
सुनिश्चित जीत हो ।

स्वाति वल्लभा राज

स्वाति कुमारी

नाम - स्वाति पति- श्री राज कुमार जन्मतिथि- २२ अप्रैल जन्मस्थान -सिवान (बिहार) शिक्षा -ऍम.बी.ए व्यवसाय- हाउस वाइफ प्रकाशन सृजक (त्रैमासिक पत्रिका- प्रबन्ध संपादन), टूटते सितारों की उड़ान (साँझा कविता संग्रह) विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशन ब्लॉग http://swativallabharaj.blogspot.in/ ​http://swati-vallabha-raj.blogspot.in/ छोटे शहर से हूँ और बहुत सी बातों को करीब से देखा और महसूस किया है । लिखना बचपन से हीं सुकून देता रहा है। फिर जीवन के भाग दौड़ में इसकी रफ़्तार एकदम मंद हो गयी । अभी कुछ समय से फिर कोशिश जारी है । लेखनी में इतनी ताकत भरना चाहती हूँ कि समाज की गलत धारणाओं और कुरूतियों के खिलाफ ना सिर्फ लिख पाऊं बल्कि लोगों में जागरूकता लाने का प्रयास करूँ ।

2 thoughts on “कर्म प्रकाशा

  • अर्जुन सिंह नेगी

    सुन्दर भाव !

  • अर्जुन सिंह नेगी

    सुन्दर भाव !

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