शिक्षक हैं दुनियाँ के गणपति
प्रथम नमन गणपति को करता, प्रथम पूज्य आधिकारी।
माँ शारद लक्ष्मी औ गौरी, शक्ति स्वरूपा महतारी।
ज्ञान शारदा भर देती हैं, धन देती माँ लक्ष्मी।
शक्ति स्वरूपा जिनकी माता, शक्ति की है बलिहारी।
बाल काल में देवता हारे, ब्रह्मा विष्णु पुरारी।
शक्ति स्वरूपा जेहि उपजाए, शाक्ती शक्ति पे भारी।
हठ योगी बालक की ताक़त, शिव भी पार न पाए।
नारद की तब पाय मंत्रणा, झट से शनि को बुलाए।
छाया की ममता, रविनंदन, अपनी व्यथा बताए।
शक्ति का लाल महा यह, भय नित मुझे सताए।
अभय मुझे वरदान प्रभू दो, तभी युक्ति बत लाऊंगा।
शिव जी बोले दिया अभय वर, गणपति दशा बताए तब।
शनि की दशा वार नहि निष्फल,नज़र डाल दी, शिव त्रिशूल पे।
हाहाकार हुआ जग में, शिव त्रिशूल कट शीश गणेशा।
क्रोध तभी गौरी को आया, गज का शीश, गणपति ने पाया।
गणपति निंदा चंद्र किया जब, चन्द्र को दिया तब श्राप।
भाद्रपद की देख चतुर्थी, लगे कलंकित दोष, जहाँ में होत हंसाई।
श्यामान्तक मणि चोरी का,कृष्ण लगा इल्ज़ाम, मत देखो यह चाँद।
रिध्दि सिद्धि जिनकी हैं पत्नी, पूरण करते काम, है गणपति उनके नाम।
धर्म कर्म के गणपति शिक्षक, लिखें हैं वेद पुराण, व्यास सम्मान।
शिक्षक हैं दुनियाँ के गणपति, उनको करूँ प्रणाम, आज का दिन है उनके नाम।
— राजकिशोर मिश्र ‘राज’ प्रतापगढ़ी
अच्छा भावगीत !
अच्छा भावगीत !