कविता : कन्या भ्रूणहत्या
मत मारो कोख में मुझे,
मैं भी जीना चाहती हूँ माँ !
सपनो के सुंदर पंख लगा
मैं भी उड़ना चाहती हूँ माँ !
भाई को तुमने जन्म दिया,
क्यों मेरा जीवन हर लिया ।
क्या ऐसा मैंने गुनाह किया,
जो गर्भ में मुझको मार दिया ।
था मारा जब तुमने मुझको,
क्या दर्द नहीं हुआ तुमको ।
अंश तुम्हारा ही मुझ में था,
क्या भान नहीं हुआ तुमको ।
तुम जन्म अगर दे देती माँ,
मैं भी दुनिया में आ जाती ।
देख तुम्हारा सुंदर मुखड़ा,
जीवन खुशियों से भर लेती ।
मैं बनती तुम्हारी सच्ची सखि ,
हर पल तुम्हारी रक्षा करती ।
आती आँच कभी तुम पर माँ,
मैं आड़ बन खड़ी हो जाती ।
तुमने क्यों अत्याचार किया ? सिर अपने यह पाप लिया ।
लेकर एक बेटी का जन्म,
क्यों तुमने यह वार किया ।
बेटा-बेटी सब एक समान,
माँ होकर मत भेद करो ।
हैं दोनों ही अंश तुम्हारा,
दुनिया को यह संदेश दो ।
— निशा गुप्ता, तिनसुकिया, असम
सुन्दर और सटीक रचना !