प्रार्थना – मधुर वचन ही बोलूँ मुख से
तर्ज – फूल तुम्हें भेजा है खत में
हाथ जोड़ कर विनय करूँ प्रभु, मुझ को यह वरदान दो,
मधुर वचन ही बोलूँ मुख से, ऐसी मुझे जुबान दो ॥
मुँह खोलूँ तो मीठा बोलूँ, जैसे मिश्री घोली हो ,
सोच समझ कर वचन उचारूँ, बातें नापी-तोली हों,
दुश्मन को भी अपना कर ले, ऐसी मीठी बोली हो ।
वाणी की वीणा पर हरदम , मीठी मीठी तान दो ॥
मधुर वचन ही बोलूँ मुख से, ऐसी मुझे जुबान दो ॥
मरहम लगा सकूँ न अगर तो, नमक न छिड़कूँ घाव में ,
गाली भी दे मुझको कोई, उत्तर न दूँ ताव में ,
भला बुरा सुन कर भी सबसे, सहज रहूँ बर्ताव में ।
बातें सुन कर चार चुप रहूँ, सहनशक्ति भगवान् दो ॥
मधुर वचन ही बोलूँ मुख से, ऐसी मुझे जुबान दो ॥
छोटा बड़ा सबल निर्बल मैं ,यथा योग्य व्यवहार करूँ ,
इस जीवन का लक्ष्य समझ, हर प्राणी का उपकार करूँ,
गलती हो यदि मुझसे कोई, मैं सहर्ष स्वीकार करूँ ।
बन ‘जितेन्द्र’ जीऊँ जग में, यह वर प्राणों के प्राण दो ॥
मधुर वचन ही बोलूँ मुख से, ऐसी मुझे जुबान दो ॥