हास्य-व्यंग्य : मैं गणेश बोल रहा हूँ
सड़क किनारे बैंड बाजे और डी जे के शोरगुल के बिच गणपति विसर्जन के बाद थके हारे लोग अपने अपने घर पर सुहाने सपनों की दुनिया में खोये हुए थे ।
नाचना गाना तो मेरे बस का नहीं था लेकिन देर रात तक देव दर्शन की आस लिए सडकों पर खड़े खड़े ही थक गया था ।
मेरे साथ मेरा पांच वर्षीय पौत्र निर्भय भी था । सभी नाचते गाते बैंड बाजे और आतिशबाजी करते विसर्जन के लिए आगे बढ़ रहे थे ।
एक दल डी जे की धून पर नाचते गाते आगे बढ़ रहा था । निर्भय जो अब तक शांत होकर देव दर्शन कर रहा था अचानक बोल उठा ‘ ” दादाजी ! इन डी जे वालों ने तो सैराट वाला गाना लगाया हुआ है । क्या गणपति जी को भी सैराट का गाना पसंद है ? ”
अब मैं क्या जवाब देता ? सवाल मुझे लाजवाब करने के लिए काफी था सो खामोश ही रहा ।
सभी सामान्य लोगों की तरह ही थका हारा मैं भी गहरी नींद में सोया ही था कि किसीने मेरा चद्दर खिंच लिया । आपको बता दूं कि चद्दर खींचते ही मेरी नींद खुल जाती है चाहे कितनी भी गहरी क्यों न हो ।
झुंझलाते हुए आँखें मसलते हुए चद्दर खींचने वाले की तरफ देखा ।
क्या आश्चर्य ? मुझे तो विश्वास ही नहीं हुआ । जल्दी जल्दी जोर से आँखें मसल कर फिर सामने देखा । फिर वही दृश्य !
और सामने ही खड़े गणाधिपति गणपति मंद मंद मुस्कराते हुए मेरी अवस्था का अंदाजा लगा कर खुश हो रहे थे ।
जी हाँ ! यकीन मानिये । स्वयं साक्षात् गजानन महाराज ही मेरे सम्मुख खडे थे ।
अब शंका की कोई गुंजाईश ही नहीं थी । एक पल की भी देर किये बिना अगले ही पल मैं विघ्न विनाशक के चरणों में साष्टांग नमन करते हुए उनसे अपने विघ्न दूर करने की याचना करने लगा ।
श्री लम्बोदर एकदंत महाराज अचानक झुके और अपने दोनों हाथों से मेरे दोनों बाजुओं को पकड़ कर उठाते हुए बोले ‘ ” उठो वत्स ! फिलहाल तो मैं तुम्हारे पास अपने ऊपर छाये विघ्न को दूर करने की आस लिए हुए आया हूँ । ”
मधुर स्वरलहरी कानों में गूंज उठी और मैं चौंककर बिना उनकी मदद के स्वयं ही उठकर विस्मय से खड़ा हो गया । ‘ यह क्या अनर्थ है ? पूरी सृष्टि के विघ्नहर्ता स्वयं अपने ऊपर छाये विघ्न की बात कर रहे थे और याचक बन कर मेरे घर पधारे थे । ‘ मुझे अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था और मेरी परेशानी को समझ कर अंतर्यामी गौरिसुत स्वयं ही बोल पड़े ” चिंता न करो वत्स ! मैं कोई बहुत बड़ी मुसीबत में नहीं हूँ । बस अपने मन की बात तुम धरतीवासियों से कहना चाहता था बहुत सालों से । सोच रहा था किससे कहूं ? कैसे कहूं ? कल विसर्जन के वक्त तुम्हारे पोते की बात सुनकर मुझे लगा कि मैं अपने मन की बात तुमसे ही कर सकता हूँ । ”
अब तो मेरे उत्सुकता की कोई सीमा नहीं थी । स्वयं जगत के पालनहार भालचंद्र मुझसे मुखातिब थे । बोल ही पड़ा ” हे महादेवनंदन ! कहिये ! मैं कैसे आपके काम आ सकता हूँ ? ”
देवाधिदेव महागणपति मंद मंद मुस्कराते हुए बोले ” वत्स ! तुम मेरे काम कैसे आ सकते हो ? मैं तो तुमको निमित्त मात्र बनाना चाहता हूँ । अपनी बात मैं तुम्हारे माध्यम से पूरी दुनिया से कहना चाहता हूँ । ध्यान से सुनो ! ”
मैं पूरी तरह से मुस्तैद हो गया था और ध्यान से विघ्नविनाशक मंगलमूर्ति की बात सुनने लगा ।
” मैं अब तुम मानवों के स्वभाव के बारे में क्या कहूँ ? अच्छा भला मैं कैलाश पर्वत के विशाल परिसर में स्वर्ग के सुख का उपभोग करते हुए अपना समय व्यतीत कर रहा होता हूँ । अपने जन्मदिन की तैयारी करना ही चाहता हूँ की धरती के एक विशेष हिस्से में भाद्रपद शुक्ल की चतुर्थी से पहले ही लोग मेरे नाम का गुहार लगाने लगते हैं । चतुर्थी के दिन जो कि मेरा जन्मदिन है पूरे देश भर में जगह जगह पंडाल वगैरह बना कर मेरी प्रतिमा स्थापित कर मेरा पूजन प्रारंभ कर देते हैं । भक्तों की भावना के वशीभूत अपना जन्मदिन मैं अपने सगे सम्बन्धियों और माता पिता के बीच न मनाकर मृत्युलोक में तुम मानवों के बीच रहने आ जाता हूँ । ”
कहते हुए वक्रतुंड कुछ देर के लिए रुके । फिर धीरे से बोले ” जब मेरी प्रतिमा स्थापित करने के बाद विधिवत मेरा पूजन करके मेरा प्रिय मोदक मुझे भोग के रूप में चढ़ाया जाता है तब मैं बड़ा ही खुश होता हूँ । दिन भर मंडप में गुन्जनेवाले भक्ति गीतों और यदाकदा लगाये जाने वाले मन्त्रों और श्लोकों को सुनकर भी मुझे परम आनंद की अनुभूति होती है । सुबह और फिर शाम को मेरी आरती में जमा होने वाली भीड़ का उत्साह और उनकी भावना को महसूस कर के भी मैं बहुत खुश होता हूँ । ”
मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था और सोच रहा था की आखिर इन्हें शिकायत क्या है ? टोक पड़ा ” माफ़ कीजियेगा भगवन ! लोग श्रद्धा से और भक्तिभाव से आपकी पूजा अर्चना करते हैं जो आपके मन को भाता भी है तो फिर आप कहना क्या चाहते हैं ? ”
अब विघ्नेश्वर कुछ असहज लग रहे थे ” अब मैं वही तो बताने जा रहा था कि तुम बीच में ही टपक पड़े । टोकाटाकी न करो और ध्यान से मेरी बात सुनो । आरती करते हैं प्रसाद बाँटते है खुशियाँ मनातेे हैं वहाँ तक तो सब ठीक है लेकिन जब रात होती है तो मंडल के कार्यकर्त्ता जो दिनभर मेरी भक्ति का दम भरते हैं मेरे ही सामने मेरे ही मंडप में बैठकर रतजगा के नाम पर जुआ खेलने जैसा अनैतिक कृत्य करते हैं । अब तुम्हीं बताओ मैं अपने भक्तों की इस अधोगति को कैसे पसंद कर सकता हूँ ?
इतना ही नहीं सुबह सुबह आरती के बाद जो लाउड स्पीकर पर फ़िल्मी गाने तेज आवाज में शुरू होते हैं तो फिर वो सिलसिला दिन भर जारी रहता है । ”
एक पल के लिए लम्बकर्ण रुके और अपने लम्बे लम्बे कानों को फडकाते हुए बोले ” देखो ! मेरे इन लम्बे कानों को देखो ! मैं इंसानों से हजार गुना तेज सुनता हूँ और जब इंसान मेरे सामने ही कर्णकर्कश आवाज में फ़िल्मी गाने लगा कर मेरे नाम पर स्वयं का मनोरंजन करता है तो मुझे पीड़ा होती है ।
इंसान इतनी सी बात क्यों नहीं समझता कि अगर इस ध्वनिप्रदुषण की वजह से मेरे कानों को कोई तकलीफ हो गयी तो फिर कौन उनकी सुनेगा ? कौन उनके विघ्न हरेगा ? ”
मैं सहमति में सर हिलाते हुए बोला ” हे गजकर्ण महाराज ! आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है । मैं इस तरफ इंसानों का ध्यान आकृष्ट करने की कोशिश करूंगा । ”
लम्बदन्त और अधीर लग रहे थे अपनी पूरी बात कहने के लिए सो बीच में ही टपक पड़े ” अरे पहले मेरी पूरी बात तो सुनो । ये आयोजक लोग ऐसे ऐसे अश्लील फ़िल्मी गाने बजाते हैं जिन्हें सुनकर दिल कहता है कि तुरंत ही मंडप छोड़कर भाग जाऊं लेकिन फिर भक्तों की भावना का ख्याल कर मजबूरी में बैठे रहता हूँ । अभी कल ही तुमने देखा जो तुम्हारे पोते ने इंगित किया । वो डी जे वाले सैराट का गाना बजा रहे थे । वहाँ तक तो ठीक है तुम्हारे सामने से आगे जाने के बाद डी जे वालों ने लगाया ‘ शिला की जवानी …….
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‘ और फिर ‘ मुन्नी बदनाम हुयी ………..’ अब तुम्हीं बताओ क्या करूँ मैं शिला की जवानी का ? और वो पता नहीं कौन मुन्नी बदनाम हुयी । होती है तो होती रहे जब तक मेरी शरण में नहीं आएगी मैं उसका भला कैसे कर सकता हूँ ? ”
अब कुछ कुछ बात मेरे समझ में आ रही थी । ” अच्छा ! तो आपको इन अश्लील गानों पे आपत्ति है ? ”
अब वरदहस्त थोडा खुश होते हुए बोले ” हाँ ! अब सही समझे हो । इतना ही नहीं ये ध्वनिप्रदुषण के साथ ही विषैले पटाखों के शोर से वायु प्रदुषण को भी बढ़ावा देते हैं । अब देखो इंसान अपने लिए मुसीबतें खुद खड़ी करता है और जब इसके प्रत्युत्तर में कुदरत थोड़ी भी प्रतिक्रिया दिखाती है तब हमें ही दोष देते हैं । अब बताओ यह भूकंप, बाढ़, सूखा, अकाल क्या इसके लिए इंसान जिम्मेदार नहीं है ? अगर ये लोग पर्यावरण का ध्यान रखें तो इन कुदरती विनाश लीलाओं से बच सकते हैं , लेकिन वाह रे इंसानी समझ ! ये अपनी गलतियों पर परदा डालने के लिए हर कुदरती आपदा के लिए हमें जिम्मेदार मानकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं ।
और तो और मेरी मूर्तियों को जल में विसर्जन करने के नाम पर भी ये दो गलतियाँ करते हैं पहली तो ये की यहाँ भी जलप्रदूषण को बढ़ावा मिलता है । जल में रहनेवाली मछलियाँ व अन्य जीव इससे बुरी तरह प्रभावित होती हैं और दूसरी सबसे अहम् बात ये है की मेरे विसर्जन का क्या अन्य कोई शास्त्र सम्मत विधान नहीं है ? इन्सान यह क्यों भूल जाता है कि पवित्र श्लोकों और मंत्रोच्चार की ध्वनि के बीच इन सभी मूर्तियों में मेरी प्राणप्रतिष्ठा करायी जाती है । और अब तुम्हीं बताओ जिसमें प्राण हो ऐसे किसी जीव का जल में विसर्जन कर देना कहाँ की समझदारी है ?
अब मैं कोई जल का जीव तो नहीं हूँ जो मुझे जल से कोई पीड़ा नहीं होगी । वो तो भला हो मेरे तपोबल का जो मैं अपनी योग शक्ति से वहां से किसी तरह बच कर वापस कैलाश पर पहुँच जाता हूँ ।
कैलाश पहुंचकर राहत की सांस लेता हूँ और प्रण करता हूँ की अब अगले बरस नहीं आऊंगा ।
विसर्जन के वक्त ” पुढच्या वर्षी लवकर या ” का घोष सुनकर मेरा दिल बैठ जाता है लेकिन क्या करूँ ? आखिर हम भक्तों की भावना के अधीन जो हैं । बस तुमसे इतना ही कहना था । क्या इंसान मेरी भावनाओं की कदर करेंगे ? ”
अभी मैं कुछ जवाब देता कि कोई धम्म से मेरे ऊपर गिरा सा प्रतीत हुआ और मैं चौंक कर उठ बैठा । मेरा दो वर्षीय पौत्र सार्थक मुझे नींद से जगाने में कामयाब हो गया था । गणेशजी की व्यथा को याद कर मन थोडा उद्विग्न तो हुआ लेकिन इस पर फिर कभी सोचने का ठान कर दिनचर्या में व्यस्त हो गया । क्या आप लोग भी कुछ करना चाहेंगे इस बारे में ?
प्रिय राजकुमार भाई जी, गणेश जी की व्यथा के बहाने से आपने हम सबके मन की व्यथा को मुखर कर दिया है. शिक्षा के पिटारे को व्यंग्य में लपेटकर प्रस्तुत करना कोई आपसे सीखे. एक नायाब और सार्थक रचना के लिए आभार.
श्रद्धेय बहनजी । कुरीतियों के बारे में बहुत सी बातें हैं जो कबि जा सकती हैं । विसर्जन के वक्त जब मेरे पांच वर्षीय पोते ने सवाल किया तो मुझे अच्छा लगा की अब शायद बड़े भी इस बात को समझें जिसे एक पांच वर्षीय बालक समझ रहा है और फिर यह रचना तैयार हो गयी । आपको रचना नायाब लगी इसके लिए और त्वरित व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका ह्रदय से धन्यवाद ।
करारा व्यंग्य ! आपने गणेश जी की व्यथा ही नहीं, बल्कि हम सबकी व्यथा को प्रकट किया है. धन्यवाद!
आदरणीय भाईसाहब ! सामाजिक सरोकार युक्त व्यंग्य लिखने की कोशिश की है । आपको अच्छा लगा इसके लिए और त्वरित व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका धन्यवाद !
आदरणीय भाईसाहब ! सामाजिक सरोकार युक्त व्यंग्य लिखने की कोशिश की है । आपको अच्छा लगा इसके लिए और त्वरित व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका धन्यवाद !
राजकुमार भाई , गणेश जी की जुबानी आप ने बहुत कुछ कह दिया . यह बात तो मैं भी कई सालों से कहना चाहता था लेकिन डर लगता था किः कोई इस का बुरा न मान ले . इसी तरह बहुत से हमारे सिख भाई पहले अखंड पाठ करवाते हैं ,बाद में ड्रिंक करते हैं . सच कहूँ तो लगता है भगवान् भी डर के मारे कहीं छुप कर बैठा है . आज कर्मकांड के सिवाए कुछ नहीं है .
आदरणीय भाईसाहब ! भक्ति भाव से किये गए कर्मकांड और दिखावे में फर्क है । आजकल भक्ति के नाम पर सख्ती और आडम्बर हो रहा है । इसीका पर्दाफाश करने की कोशिश की है । इस कोशिश में आपके सहयोग और प्रतिक्रिया के लिए आपका धन्यवाद् ।
आदरणीय भाईसाहब ! भक्ति भाव से किये गए कर्मकांड और दिखावे में फर्क है । आजकल भक्ति के नाम पर सख्ती और आडम्बर हो रहा है । इसीका पर्दाफाश करने की कोशिश की है । इस कोशिश में आपके सहयोग और प्रतिक्रिया के लिए आपका धन्यवाद् ।
बहुत खूब , व्यंग्यपूर्ण
आदरणीय भाईसाहब ! सार्थक व त्वरित प्रतिक्रिया के लिए आपका धन्यवाद ।
आदरणीय भाईसाहब ! सार्थक व त्वरित प्रतिक्रिया के लिए आपका धन्यवाद ।