संस्मरण

मेरी कहानी 164

अब हम ने कही और तो जाना नहीं था, इस लिए अलगाव में ही घूमना फिरना था। वक्त भी अब इतना नहीं था। सो एक दिन हम समुन्दर के किनारे मज़े करने का प्रोग्राम बना लिया। बीच कितनी दूर है, हम ने पहले ही पता कर लिया था और यह सिर्फ आधे घण्टे का पैदल सफर था। जसवंत को मैंने कहा कि हम टैक्सी ले लेते हैं। जैसे इंडिया में टैक्सी वाले पीछे पढ़ जाते हैं, यहां ऐसा कुछ नहीं था। टैक्सी स्टैंड पर टैक्सीयां होती हैं और अगर किसी को चाहिए तो खुद जा कर उस से पूछ सकते हैं। एक टैक्सी वाले से पता किया तो उस ने बीस यूरो मांगे। जसवंत कहने लगा,” मामा! पैदल चलते हैं और विंडो शॉपिंग भी करते जाते हैं “, टैक्सी का इरादा छोड़ हम पैदल चलने लगे और जसवंत का यह फैसला ठीक ही था क्योंकि रास्ते में तरह तरह की दुकाने थीं। चलते चलते बहुत सी चीज़ें हम ने पसंद कर लीं और फैसला किया कि बीच से वापस आते वक्त हम इन को खरीद लेंगे। चलते चलते पहले तो हम को कोई महसूस नहीं हुआ क्योंकि सड़कें समतल ही थीं लेकिन जब बीच से कुछ दूर ही रह गए तो देखा कि बीच तक जाने वाली सड़क की ढलान बहुत स्टीप थी और देख कर ही महसूस हो गया कि हम को टैक्सी कर लेनी चाहिए थी। अब तो बीच सामने दिखाई दे ही रहा था और हम सड़क की एक ओर लगी रेलिंग को एक हाथ से पकड़ कर चलने लगे जो इसी मकसद से बनाई हुई थी। धीरे धीरे हम ऐसे चल रहे थे जैसे किसी पहाड़ी से नीचे उतर रहे हों। बीच तक पहुँचने में हम को कोई पंदरां मिंट लगे। बीच पर पहुंचे तो देख कर रूह खुश हो गई, बिलकुल उसी तरह दिखाई दे रहा था जैसे हॉलिडे कंपनी के ब्राउचर में था। सामने समुन्दर की बड़ी बड़ी लहरें दिखाई दे रही थी। मौसम बहुत सुहावना था, ना ज़्यादा गर्मी, ना ठंडक। दूर दूर तक ब्राऊन रंग की रेत ही रेत थी और लोग बीच चेअरों पर लेटे हुए थे। गोरीआं बिकीनी में थीं और उन के मर्द सिर्फ चड्डी में और बच्चे सैंड कैसल बना रहे थे। नज़दीक ही बियर बार और बारबर्कीऊ स्टाल थे, जिन पर तरह तरह की मछलियां और अन्य खाने भूने जा रहे थे। यहां की सार्डीन मछली बहुत मशहूर है। गोरे लोग कुछ तो बार में बैठे बीअर का मज़ा ले रहे थे और कुछ लोग बार से बोतलें खरीद कर बीच पर ही ले आते।
एक तरफ बड़ी बड़ी चटाने थीं। कुछ चटाने कुदरत ने ऐसी बना दी थी जैसे कोई गेट हो और यह समुन्दर के बिलकुल किनारे पर थी, इन गेट जैसी चटानों के नीचे से साफ़ पानी बह रहा था। एक चटान के ऊपर लोग खड़े हो कर समुन्दर का नज़ारा देख रहे थे। इन चटानों पर चढ़ना कुछ खतरनाक था। कुलवंत और गियानो बहन तो एक जगह बैठ गईं लेकिन मैं और जसवंत उन चटानों पर चढ़ने लगे। ऊपर जाने के लिए चटान के एक सिरे पर पगडंडी बनी हुई थी, जो मुश्किल से दो फीट चौड़ी थी और नीचे समुन्दर की बड़ी बड़ी छलें दिखाई दे रही थीं, जो देख कर डर भी लगता था कि कहीं इन में गिर ना जाएँ। चटान को एक तरफ से पकड़ पकड़ कर हम आगे बढ़ रहे थे। एक जगह तो यह पगडंडी मुश्किल से एक फुट चौड़ी होगी लेकिन हौसला करके हम इस को पार कर गए और चटान के बिलकुल ऊपर पहुँच गए। और लोग भी वहां घूम रहे थे और यहाँ से समुन्दर का नज़ारा अधभुत था। कोई आधा किलोमीटर दूरी पर कभी कभी कोई समुंद्री जहाज़ जाता दिखाई देता। इस चटान के तीनों तरफ हम ने घूम कर नज़ारा देखा। कोई पंदरां बीस मिनट हम इस चटान पर घुमते रहे और फिर वापस चलने लगे और जल्दी ही नीचे आ गए। एक कैफे में जा कर खाया पिया और वापस चल पड़े। कुलवंत चाहती थी हम टैक्सी कर लें लेकिन जसवंत बोला कि बस यह पंदरां मिनट की ऊंचाई है, फिर इस के आगे तो बहुत आसान है और ऊपर जा कर कुछ शौपिंग भी हो जायेगी। हम चल पड़े। लोहे की रेलिंग को पकड़ पकड़ कर हम ऐसे चल रहे थे जैसे माऊंट एवरेस्ट पर चढ़ रहे हों। दोनों तरफ बड़े बड़े मकान थे, बातें करते जाते थे कि इन घरों के लोग तो हर रोज़ यह चढ़ाई चढ़ते होंगे। बड़ी मुश्किल से हम ऊपर आये, अब आगे चलना आसान था। आगे दुकाने ही दुकाने थीं जिन में वाइन की दुकाने बहुत थीं। पुर्तगाल में वाइन बहुत बनती है, इस का कारण यहाँ फ्रूट बहुत होता है। फ्रूट से बनी तरह तरह की वाइन जो पुर्तगाल की बनी हुई होती है,वोह इंगलैंड और अन्य देशों को एक्सपोर्ट की जाती है और यही वाइन इंगलैंड में बहुत मह्न्घी मिलती है। इस लिए जो लोग अल्गार्व में हौलिडे के लिए आते हैं यहाँ से वाइन की बोतलें खरीद लाते हैं। चार चार, फ्रूट वाइन की बोतलें हम ने भी ले लीं। फैंसी गुडज़ की दुकाने बहुत थीं। कुलवंत ने हैंड बैग लिया और कुछ जसविंदर और रीटा पिंकी के लिए खरीदा जो याद नहीं किया कुछ था लेकिन मैंने अपने लिए एक बड़ा मघ खरीदा जो अभी भी मेरे सामने शीशे की अलमारी में पढ़ा दिखाई दे रहा है, जिस पर बड़े अक्षरों में अल्गार्व लिखा हुआ है।
यहाँ काफी शौपिंग हम ने की। वैसे तो यह रहायेशी एरीया है लेकिन यहाँ होटल भी बहुत हैं और ज़िआदा दुकाने घर के फ्रंट रूम में होती हैं जो सड़क की ओर खुलती हैं । आज हम ने काफी घूम लिया था और अब होटल की तरफ रवाना हो गए। होटल में पहुँच कर कुलवंत ने चाय बनाई। चाय पी कर जसवंत और गियानो बहन अपने कमरे में चले गए ताकि कुछ आराम हो सके। रात को होटल के हाल में ही प्रोग्राम था जो हौलिडे कम्पनी की ओर से होना था। अब हम रिलैक्स होने के लिए सो गए। याद नहीं कितने घंटे सोये लेकिन जब उठे तो अँधेरा हो चुक्का था। टैली ऑन किया और बीबीसी निऊज़ देखि। निऊज़ देख कर सनान किया, कपडे बदले और हम जसवंत और गियानो बहन के रूम में चले गए। वोह लोग भी तैयार हो रहे थे। याद नहीं कितना वक्त होगा लेकिन काफी अँधेरा हो चुक्का था। हम नीचे आ गए और सीधे हाल में आ गए। हाल में लोग बच्चों के साथ आ रहे थे। स्टेज लगी हुई थी और मिऊजिक वज रहा था। मर्द उठ कर बार से अपने लिए, बचों के लिए और अपनी पत्निओं के लिए ड्रिंक ला रहे थे। हम भी अपने लिए और औरतों के लिए सॉफ्ट ड्रिंक ले आये और बातें करने लगे। हमारे पास अब एक ही दिन बचा था और उस के बाद हम ने फ़ारो एअरपोर्ट से फ्लाईट ले लेनी थी, इस लिए दुसरे दिन को भी शौपिंग के सिवाए और कुछ नहीं करना था। जसवंत कहने लगा, ” मामा ! आज मज़े से पियें “, और हम चीअरज़ कह कर पीने लगे।
शो बहुत शानदार चल रहा था और यह हॉलिडे कंपनी की तरफ से ही था और इस को स्टेज करने वाले गोरे ही थे। बच्चों को स्टेज पर बुला कर उन के मुकाबले कराते थे और कभी कभी तालियाँ बजती थीं, उन के माता पिता खूब जोर शोर से उठ कर उन की हौसला अफ़ज़ाई करते। हमारे सिवा सभी गोरे लोग ही थे और हम मज़े से अपनी बातें कर रहे थे। जसवंत कहने लगा,” मामा ! हॉलिडे कैसी रही ?”, मैंने कहा,” भला हो तुमारा, यहां आ कर इतना कुछ देखा जाना कि कभी सपने में भी सोचा नहीं था कि कभी वास्कोडिगामा की जनम भूमि को देखेंगे, हम तो सारी उम्र इतिहास की किताबों में ही पढ़ते रहे, अब यहां आ कर तो ऐसा लगा जैसे वास्कोडिगामा अभी भी यहां ही रहता है “, जसवंत हंस पढ़ा और बोला कि कारक ट्री तो उस ने भी पहली दफा देखे थे। मैंने बोला, “जसवंत ! वास्कोडिगामा की तो छोड़ो, मैं तो यह जान कर हैरान हूँ कि पुर्तगाल के अधीन 52 देश थे और कभी ब्राज़ील भी इन के अधीन था, जो 1822 में आज़ाद हुआ था, हम तो अंग्रेजों के बारे में ही सोचते रहे, यहां आ कर तो हैरानी हुई कि फ्रांस इटली स्पेन हॉलैंड आदिक देशों की अपनी अपनी बसतीआं थीं। इन गोरे लोगों ने अपनी हुशियारी से बड़े बड़े देश अपने अधीन कर लिए और उन को खूब लूटा और रही बात स्लेवरी की तो हम तो सिर्फ भारत पर मुगलों के हमलों के बारे में ही सोचते रहे कि हमारे लोगों को गज़नी के बाज़ारों में बेच जाता था, यहां तो इन लोगों ने अफ्रीका के जंगलों से उन लोगों को पकड़ पकड़ कर नए देश ही बना दिए। जब कोलम्बस ने अमरीका का पता किया तो इन लोगों को मज़दूरों की जरुरत थी, इस लिए अफ्रीका से लोगों को पकड़ पकड़ कर यहां काम पर लाया, तभी तो तो यह लोग इतने अमीर हो गए, इस स्लेवरी की तस्वीर देखनी हो तो रुट फिल्म में भी देखि जा सकती है “, ” मामा ! मैं भी तो कीनिया में पैदा हुआ था, मामा (गियानो बहन ) से पूछ लो, हमारे बज़ुर्गों ने भी तो वहां स्लेवरी ही की थी, अफ्रीका को बिल्ड अप्प करने वाले हमारे लोग ही थे ”
बातें करते करते बहुत वक्त हो गया और कुछ लोग काउंटर से अपने लिए खाने ला रहे थे। एक तरफ प्लेटें चमचे ग्लास और नैपकिन जैसी चीज़ें पढ़ी थीं और साथ ही ट्रे रखी हुई थीं। लाइन लगी हुई थी और सब लोग अपनी अपनी ट्रे में अपनी मर्ज़ी के खाने डालते हुए आगे जा कर पैसे दे देते थे। हम भी इस लाइन में खड़े हो गए और अपने पसंदीदा खाने ले कर टेबल पर बैठ गए और खाँने लगे। खाने बहुत स्वादिष्ट थे। खाते खाते जसवंत बोला, ” मामा ! अपने घर में हम कितने तेज़ मिर्च मसाले खाते हैं लेकिन इन खानों में कोई तीखी चीज़ है ही नहीं, फिर भी बहुत स्वाद लगते हैं “, हाँ ! यह बात तो तुमारी सही है, बस हम को आदत ही पढी हुई है करारे मसालों की, मैंने जवाब दिया। बातें करते करते खाना खा लिया, रात काफी बीत चुक्की थी और हम उठ कर ऊपर अपने अपने कमरों में आ कर सो गए।
दूसरे दिन सुबह उठे तो कार हायर वालों की ओर से वही गोरी कार वापस लेने आ गई। गोरी ने कार को अछि तरह कार के अंदर और बाहर देखा, यह देखने के लिए कि कार को कोई नुक्सान तो नहीं हुआ था। फ़ाइल निकाल कर उस ने जसवंत के दस्तखत लिए और कार ले कर चल दी। हम भी तैयार हो कर बाहर शॉपिंग के लिए चल पढ़े। आज सारा दिन हम दुकानों के चक्कर ही काटते रहे। कुलवंत और गियानो बहन तो थक कर अपने कमरे में आ गईं लेकिन मैं और जसवंत मटरगश्ती करते रहे। एक छोटी सी दूकान एक पुर्तगाली बुढ़ीया की थी जो होगी कोई सतर बहत्तर साल की। यह बुड़ीआ बिलकुल इंडियन औरतों जैसी थी। यह अंग्रेज़ी बहुत अछि तरह बोलती थी। हमारे साथ बातें करते करते उस की आँखों में आंसू आ गए। बोली,” मेरी लड़की अब डाक्टर बन गई है, उस की उम्र भी अब चालीस की हो गई है लेकिन शादी नहीं कराती, मैं चाहती हूँ यह शादी करा ले और मैं अपने पोते पोती को देख सकूँ “, बहुत बातें तो मुझे याद नहीं लेकिन बहुत देर तक हम उस से बातें करते रहे। हमें ऐसे लगा जैसे कोई इंडियन बुढ़िया ही हो क्योंकि इंगलैंड में तो सभी अपने बच्चों के बारे में एक बात ही कह देते हैं की यह उनकी अपनी ज़िन्दगी है।
दूसरे दिन हम ने दस बजे कमरा खाली कर देना था, इस लिए रात को ही हम ने बहुत सा सामांन पैक आप कर लिया था । आज रात हम ने खूब बातें कीं, देर रात तक बैठे रहे और सो गए। सुबह जल्दी जल्दी उठे, तैयार हो कर ब्रेकफास्ट के लिए चले गए। वापस आते ही देखा, कुछ लोग अपने सूटकेस नीचे ले आये थे। हम भी कमरे में गए, ज़्यादा सामान तो पैक अप्प ही था, सो कुछ ही मिनटों में अपने अपने सूटकेस नीचे ले आये और अपनी अपनी टिकटें और पासपोर्ट बगैरा लेने के लिए हम भी लाइन में खड़े हो गए। आधे घंटे में ही सब ने अपने अपने पासपोर्ट टिकटें बगैरा ले लिए। कुछ देर बाद ही एक कोच आ गई, जिस में से नए यात्री निकल रहे थे जिन्होंने इसी होटल में निवास करना था और उन के निकलने के बाद उसी बस में हम सवार हो कर फारो एअरपोर्ट की तरफ रवाना हो गए। आधे घंटे में फारो एअरपोर्ट पर पहुँच गए। चैक इन पर एक घंटे का वक्त लगा और कुछ देर बाद जहाज़ में बैठ कर इंगलैंड की ओर उड़ रहे थे। पुर्तगाल की यात्रा भी एक मज़ेदार यात्रा थी, जिस में बहुत बातों का गियान हासिल हुआ, जिन के बारे में कभी सोचा भी नहीं था। चलता. . . . . . . . . . . .

7 thoughts on “मेरी कहानी 164

  • लीला तिवानी

    प्रिय गुरमैल भाई जी, क्या ग़ज़ब की सैर करवा रहे हैं आप! रोचकता का निर्वाह भी भरपूर हो रहा है. एक और रोचक व सार्थक कड़ी के लिए आभार.

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      धन्यवाद लीला बहन . बस जो देखा वोह ही लिख रहा हूँ .

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत ज्ञानवर्धक लेखमाला, भाईसाहब. पुर्तगाल का सारा हाल पढ़कर मजा आ गया. मैंने कभी यूरोप देखा नहीं है. अपर आपका संस्मरण पढ़कर लगता है कि हम भी घूम रहे हैं. वैसे बच्चे यूरोप घुमने का प्लान बना रहे हैं. खास तौर पर पेरिस और अमरदस्तम (नीदरलैंड). देखें कब आना होता है.

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      विजय भाई ,वैसे तो घर के झंजट से निकलता बहुत मुश्किल होता है ,यह तो काम से फुर्सत मिलने के बाद ही संभव हो सका है . मन तो चाहता था कि और भी घूमें लेकिन विधाता को मंजूर नहीं था . वैसे पैरस में तो बहुत कुछ देखने को है . ऐम्स्त्रदैम भी बहुत अच्छा है और हमारे लोग वहां काफी रहते हैं . हमारा मन इंडिया घूमने का भी बहुत था .जितना देखा, उस को याद कर ही सतुष्ट हो जाते हैं . कैरेला में हमारे लोग काफी जाते हैं . चंडीगढ़ देखे बहुत साल हो गए, अब तो वहां बहुत कुछ देखने को है .

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत ज्ञानवर्धक लेखमाला, भाईसाहब. पुर्तगाल का सारा हाल पढ़कर मजा आ गया. मैंने कभी यूरोप देखा नहीं है. अपर आपका संस्मरण पढ़कर लगता है कि हम भी घूम रहे हैं. वैसे बच्चे यूरोप घुमने का प्लान बना रहे हैं. खास तौर पर पेरिस और अमरदस्तम (नीदरलैंड). देखें कब आना होता है.

  • राजकुमार कांदु

    बहुत ही बढ़िया कड़ी भाईसाहब । शहर से समुद्रतल इतना नीचे होगा यह जानकारी पाकर थोड़ा विस्मय हुआ । बीच की ख़ूबसूरती का वर्णन आपने बख़ूबी किया है । पुर्तगाली वृद्धा की चिंता भी जायज़ ही लगी जो बिलकुल भारतीय माँ की तरह अपनी बेटी की चिंता कर रही थी । अब हम भी आपके ही साथ इंग्लंड के लिए उडने को तैयार हैं । धन्यवाद ।

    • धन्यवाद राजकुमार भाई . विस्मय हुआ कि आप देर रात तक जागते हैं , जरुर पहाड़ों की सैर में मसरूफ होंगे , और लिख रहे होंगे . एक बात है किः जब हम किसी की रचना पढ़ कर, अपना कॉमेंट देते हैं तो लिखने वाले को आगे लिख्ने के लिए उत्साह मिल जाता है कि कोई उस को पढ़ रहा है . मैं कभी सारे रचनाकारों की रचनाएं पढ़ कर अपना विऊ लिखता था लेकिन कोइ जवाब ही नहीं देता था ,सो मैं हट गिया . विजय भाई भी कई दफा लिख चुक्के हैं कि कॉमेंट का जवाब देना चाहिए लेकिन पता नहीं लेखक क्यों जवाब नहीं देते . लीला बहन के जनम दिन पर लिखी आप की कविता बहुत अछि लगी .

Comments are closed.