गज़ल
कदम कदम पे सूतूर-ए-कहकशाँ कर दे
खुदा चाहे तो सितारे ज़मीन पर भर दे
सभी के पाँव तले बिछा दे मखमली चादर
जमीं चाहें जब रास्तों को गुलिस्तां कर दे
झुके तो ज़मीं पर लुटा दे खुशी के मोती
उठे जो आसमां उड़ान का हौसला भर दे
बिखेर दे हर सिम्त महक मोगरों की
बहे हवा तो माहौल खुशनुमा कर दे
सजा के जुगनू खिला के फलक पे सितारे सारे
निखरती रात उजाले की चाँदनी भर दे
दर-ओ-दीवार को सजा के अपने हाथों से
भर के एहसास कोई चाहे तो उसको घर कर दे
धनक सी फैल जाये हर शगुफ्ता चेहरे पर
सुरमुयी श़ाम चेहरों पे वोह सुर्खी भर दे
जल उठे नाम मेरा दिये की तरह अँधेरे में
खुदा शख्सियत मेरी इतनी तो मोअतबर कर दे
कि ज़र्रा ज़र्रा कायनात का नज़राना दिया करता है !!