गीत – कह दो कि तुम्हें प्यार नहीं है?
प्यार से प्यारा, इस धरती पर सुंदरतम उपहार नहीं है,
कह दो कि तुम्हें प्यार नहीं है?
प्यार की लहरें भरकर नदियाँ,
सागर से मिलने जाती हैं,
प्रेम-पीयूष हृदय में धरकर,
बरखा बूँदें बरसाती हैं,
गीत प्यार के गा कर भँवरे,
फूलों के सिर पर इठलाते,
प्यार से बढ़कर इस धरती पर
और कोई व्यवहार नहीं है,
कह दो कि तुम्हें प्यार नहीं है।१।
प्रेम-पाश में बँधे हुए सब ,
चाँद-सितारे डोल रहे हैं,
कीट-पतंगे-खग-प्राणी भी,
प्रेम की वाणी बोल रहे हैं,
लता-वृक्ष-शिला-नग-काँटे,
प्यार के मद में मौन हो गए,
कण-कण में है रूप प्यार का
प्यार का तो आकार नहीं है,
कह दो कि तुम्हें प्यार नहीं है।
इस धरती पर प्यार ना होता,
तो रब को संसार ना भाता,
सीता के संग राम न होते,
राधा के संग श्याम न आता,
प्यार गले लगा कर मीरा-मरियम ने भी जग को जाना,
प्यार से प्यारा ईश्वर का भी,
और कोई अवतार नहीं है,
कह दो कि तुम्हें प्यार नहीं है।
— शरद सुनेरी
बहुत सुन्दर गीत !