“कुंडलिया”
पापी के दरबार में, वर्जित पूण्य प्रवेश
काम क्रोध फूले फले, दगा दाग परिवेष
दगा दाग परिवेष, नारकी इच्छाचारी
भोग विलास कलेश, घात करे व्यविचारी
कह गौतम चितलाय, दुष्ट है सर्वव्यापी
कली छली मिलजांय, प्रतिष्ठा पाए पापी।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी