कविता “कुंडलिया” *महातम मिश्र 15/09/2016 झीलें सुंदर वादियाँ , काश्मीरी बहार रंग-विरंगी रोशनी, शिकारे चह दुलार शिकारे चह दुलार, अलौकिक शोभा धारी सैलानी आकर्षाय, खिले फूल की क्यारी कह गौतम चितलाय, सिंधु सभ्यता जंह खिले पाथर कस विखराय, रमणिया डल जल झीलें।। महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी