स्वास्थ्य

भोजन का रहस्य : चबाकर खाना

भोजन के सम्बंध में एक अति महत्वपूर्ण बात यह है कि हम जो भी खा रहे हों उसे खूब चबा-चबाकर खाना चाहिए। अधिक चबाने से उसमें कई ऐसे रस मिल जाते हैं, जो पाचन में बहुत सहायक होते हैं। कुछ विद्वानों ने तो यहाँ तक कहा है कि प्रकृति ने हमारे मुँह में बत्तीस दाँत इसलिए दिये हैं कि हम प्रत्येक कौर को 32 बार चबायें। अच्छी तरह चबाये बिना भोजन निगल जाने पर उसे पचाने का कार्य आँतों को करना पड़ता है, जिससे हमारी पाचन शक्ति धीरे-धीरे कमजोर हो जाती है और मलनिष्कासक अंग भी ठीक प्रकार कार्य नहीं करते। इससे कब्ज पैदा होता है और उससे तमाम बीमारियाँ उत्पन्न होती हैं। इसलिए दाँतों का कार्य आँतों से लेना बहुत गलत है।

खूब चबा-चबाकर खाने से भोजन की मात्रा पर अपने आप नियंत्रण हो जाता है, क्योंकि अच्छी तरह चबाने से कम भोजन में ही पेट भर जाता है। अच्छी तरह चबा-चबाकर खायी गयी एक रोटी जल्दी-जल्दी खायी गयी चार रोटियों से अधिक पौष्टिक होती है। इसलिए हमें खूब चबा-चबाकर खाना चाहिए और भूख से थोड़ा कम ही खाना चाहिए।

कई लोग दिन में कई बार कुछ-न-कुछ खाते ही रहते हैं। यह भी बीमारियों को निमंत्रण देने के समान है। सामान्यतया हमें दिन में केवल दो बार भोजन करना चाहिए। वैसे मैं नाश्ता करने के पक्ष में नहीं हूँ। मेरा विचार यह है कि दोपहर भोजन से पूर्व जहाँ तक सम्भव हो, हमें कोई ठोस वस्तु नहीं खानी चाहिए। यदि नाश्ता करना आवश्यक ही हो, तो हल्का और सुपाच्य तरल आहार लेना चाहिए, जैसे दूध, मठा, दलिया, अंकुरित अन्न आदि।

कहावत है कि ‘एक बार खाये योगी, दो बार खाये भोगी और तीन बार खाये रोगी’। इसका तात्पर्य भी यही है कि दो बार से अधिक भोजन करने वाला प्रायः रोगी बना रहता है। इसलिए जहाँ तक सम्भव हो, हमें केवल दो बार ही पूर्ण आहार करना चाहिए। दो भोजनों के बीच में कम से कम 6 घंटों का अन्तर अवश्य होना चाहिए। इस सम्बंध में सबसे सुनहरा नियम यह है कि जब तक कड़ी भूख न लगे, तब तक कुछ भी मत खाइये। बिना भूख के खाना या कम भूख में खाना मुसीबत बुलाने के समान है।

— विजय कुमार सिंघल

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: [email protected], प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- [email protected], [email protected]