ग़ज़ल
बता तो दे तेरे दिल में मुकाम किसका था
चल दिए हम तो उठके बीच से ही महफिल के
तू नहीं था तो हमें एहतराम किसका था
आग लग गई पानी में खत के टुकड़ों से
ये दिल की बेकरारी का पैगाम किसका था
बहुत से लोग हैं तेरी उम्मीद में लेकिन
ये जो हो गया किस्सा तमाम किसका था
शिकवा है मेरी आज़ाद ख्याली का जिन्हें
वही कहें कि सिकंदर गुलाम किसका था
दिल निचोड़ डाला हमने लफ्ज़ों में अपना
और वो पूछते हैं ये कलाम किसका था
— भरत मल्होत्रा