लालच और मोह
(लालच और मोह)
अभी कुछ समय बाकी है
प्रलयकाल में,
समेट लो अपने सारे धन
हाँ, तुमने यही तो सोचा था
ले जाऊँगा बटोरकर अंतिम क्षण
जितने भी धोखे, मक्कारी से तुमने
अर्जित किये धन- दौलत
और इसी घृणित सोच के कारण
तुमने कभी नहीं किये गरीब, लाचारों
पर रहम
ऐ मुर्ख इंशान,
कुछ नहीं जाएगा तेरे संग, सब
धरा का धरा रह जाएगा इसी
धरती पर
चाहे तुम जितना भी कर लो प्रयत्न
खाली हाँथ आये हो खाली हाँथ
ही जाओगे
चाहे राजा हो या रंक सभी को
एकदिन भौतिक, सुख-सुविधा
धन-सम्पत्ति सबकुछ छोड़कर
चले ही जाना है
यही विधि का विधान है यही
नियति है
फिर क्यों ? करते हो इतना लोभ
छोड़ क्यों नहीं देते ये लालच और
धन का मोह।