कविता

कविता

कतरा कतरा जिये
बूंद बूंद मरे
शबनम नही
बस आसूं मिले
हमारा दिल तो
तुम्हारा खिलौना था
जो अब चूर है
तुम भी क्या खूब निकले
अपनाया भी नही
छोड़ा भी नही
भंवर में ले आये
किनारा कह कर
डूबोया भी नहीं
निकाला भी नही
जब जब यकीन किया
तुम पर तो
तुमने वादा
तोड़ा भी नही
निभाया भी नहीं
किनारे की तलाश में
भंवर में फंस गये
डूबना था शायद
किस्मत में हमारी
साहिल ढूंढने निकले
भंवर में फंस गये
तुम ने बचाया भी नहीं
हाथ छोड़ा भी नहीं तकते रहे तुम्हारी आंखों में
तुमने पलके बंद भी नहीं की और खोली भी नहीं
और हम बचने की जगह डूब गये
आंखो में तुम्हे बसाये बसाये
रमा शर्मा, कोबे, जापान

रमा शर्मा

लेखिका, अध्यापिका, कुकिंग टीचर, तीन कविता संग्रह और एक सांझा लघू कथा संग्रह आ चुके है तीन कविता संग्रहो की संपादिका तीन पत्रिकाओ की प्रवासी संपादिका कविता, लेख , कहानी छपते रहते हैं सह संपादक 'जय विजय'