कविता – फैशन
चल रहा कलयुगी दौर,
कब होगी जीवन की भोर।
अंधाधुंध सब दौड़ रहे हैं,
फैशन को सब ओड़ रहे हैं।
कोई कहता नया जमाना है,
फैशन का साथ निभाना है।
बिन फैशन जीवन कैसा ?
अनपढ़ गंवार मूर्ख जैसा ।
आड़ा तिरछा जैसा भी हो,
उलटा सीधा कैसा भी हो।
मंहगा सस्ता क्या सोचना ?
बस फैशन की ओर देखना।
है निराली फैशन की दुनिया,
जिसके आगे झुकती मुनिया।
हो जाए चाहे अंग प्रदर्शन,
पर न हो फैशन में अड़चन।
फैशन ने सब खत्म कर दिया,
धन को यूँ बर्बाद कर दिया।
फेंक दिया लज्जा को उतार,
हो रहा संस्कृति पर प्रहार ।
सच्चा फैशन सौम्य शीलता,
मत तोड़ो अपनी अस्मिता।
धरती सूरज चाँद सितारे,
मर्यादा में रहते यह सारे।
फैशन उतना ही अच्छा है,
जितना हो सीमा के अंदर।
मर्यादा में ही सब अच्छे ,
धूप,पानी, हवा या बच्चे।
दिया प्रभु ने सुंदर रूप,
क्यों बनाते तुम कुरूप।
कहते तुम जिसको फैशन,
होता मनुज का बेढंगापन।
छोड़ दो फैशन को पीछे,
उच्च आदर्शों को अपनाओ।
मत चलो दूसरों के पीछे,
अपना मार्ग स्वयं बनाओ।
— निशा गुप्ता, तिनसुकिया, असम