कविता

कविता : आतंकी से हमदर्दी

आज सारा सोशल मिडीया मोदी जी की कार्यशैली पर सवाल उठा रहा है, 56 इंच सीने की बात कर रहा है। हो सकता है मोदी जी के निर्णय में कुछ कमजोरी हों, मगर आतंक के हमदर्दों से हमदर्दी कैसी——-

डर नही लगता हमको यारों, आतंक के ठेकेदारों से,
जब भी मुहँ की खायी हमने, घर के ही गद्दारों से।
सेना को अधिकार दिये थे, पैलट गन का प्रयोग किया,
क्यों राजा, येचुरी और शरद, हमदर्द बने मक्कारों के?
कांग्रेस के लोगों की भी भाषा, गद्दारों के हक में थी,
क्यों नही आग उगलती लेखनी, सत्ता के इन हकदारों पे?
उमर, फारूक और गुलाम नवी भी, पैलट गन विरोध करें,
आतंकी हमले का दोष लगाते, भारत के सरदारों पे।
पनाह दे रहे गद्दारों को, घाटी में पाकी सिपहसालार,
दोष लगाते शर्म न आती, सीमा के पहरेदारों पे।
अगर जरा भी शर्म है बाकी, भारत से है तुमको प्यार,
मौत बन कर टूट पडो तुम, पहले घर के गद्दारों पे।

डॉ अ कीर्तिवर्धन