कहानी

कहानी – अव्यक्त

चार दिन के प्रवास पर में दिल्ली आई थी लाजपत नगर के एक होटल में रूकी थी । होटल की खिड़की जिस तरफ खुलती थी उस तरफ रिहाईशी इलाक है । बड़ी- बड़ी कोटियों में धनी- मानी लोगों का निवास है । दोमंजिला, तीन मंजिला घर है बाहर का अहाता भी सजा हुआ है ।

मेरी यह बुरी आदत है कि मैं खिड़की खोल कर ही रखती हूँ, एयरकंडीशनर मशीन मुझे नहीं सुहाती है । ईश्वर प्रदत्त शुद्ध हवा का ही उपयोग मुझे बेहतर लगता है । प्रात: काल उठकर प्रकति को निहारने में जो आनंद है, दुनिया के सभी आनंद उसके आगे फीके लगते हैं । मैं कभी कभी तो  सब कार्य भूल कर न जाने कितनी देर तक प्रकृति के अंग- अंग को अपनी पैनी निगाहों से पढ़ती रहती हूँ । पक्षियों का उड़ना, वृक्षों का हिलना,मंद- मंद पवन का मुझसे लिपटना कितना सुखद होता है। सड़क पर लोगों की आवाजाई, घरों में कनकते बर्तन, पार्क में व्यायाम करते लोग यह संकेत देते हैं कि एक और सुंदर प्रभात हो गया । चारों तरफ अपने -अपने काम की आपाधापी शुरू हो जाती है ।

अपने व्यवहार के अनुकूल उस दिन भी में होटल के कमरे की बालकनी में घूम घूम कर प्रकृति की किताब पढ़ रही थी कि तभी मेरी आँखें एक मकान की बालकनी में जाकर  अटक गई । मैंने वहाँ का जो मंजर देखा तो मेरी रूह काँप गई । घर का मालिक दो लोगों की रस्सी पकड़ कर बालकनी में लाया और उनको वहां बाँध दिया । उनमें एक पशु ( कुत्ता ) था जिसके गले में रस्सी बंधी थी और दूसरी एक साठ सत्तर के दशक की एक बूढ़ी माँ थी, जिसके एक हाथ में रस्सी बंधी थी, उसको भी बालकनी के खंम्बे से बाँध दिया गया था ।

मैं हैरान परेशान दुखी होकर यह दृश्य देख रही थी कि तभी घर की मालकिन दोनों के आगे खाना रख गई । कुत्ते ने दो मिनट में ही खाना सफाचट कर दिया पर बूढ़ी माँ सिर्फ खाने को निहार रही थी ।यह दृश्य आँखों के कोर गीले करने के लिए काफी था । अब तो मेरी जिज्ञासा दुगनी हो गई, मैं साँसों को थामे सारा मंजर देख रही थी । अचानक घर की मालकिन ने आकर उस बूढ़ी माँ से ऊँची आवाज में कुछ कहा।पर मैं थोड़ा दूर होने के कारण समझ नहीं सकी । मुझे हार्दिक पीड़ा हो रही थी ।मैं एकटक उधर ही देख रही थी । मैं उस बूढ़ी माँ को बाँधने का रहस्य जानना चाहती थी ।

तभी तीन चार साल का एक बच्चा बालकनी में आया और उस बूढ़ी माँ की गोदी में बैठ गया । बूढ़ी भी बड़े प्यार से उसे चूमते हुए उससे बातें कर रही थी । मुझे लगा वह  दादी और पोता थे । दोनों का प्यार देखकर मैं भाव विह्वल हो गई । मैं सब कुछ भूलकर उस प्यार में खो गई ।पोता भी कभी बूढ़ी को प्यार में मारता तो कभी उसके गालों को चूम रहा था,बड़ा सुखद दृश्य था।तभी घर की मालकिन

कुछ बड़बड़ाती हुई और बच्चे को बूढ़ी की गोद से खींच कर ले गई । मेरे अंदर एक कसक सी उठी । अब मैं  उस  बूढ़ी माँ के बारे में सबकुछ जानने के लिए व्याकुल हो उठी । किससे से पूछूँ.? क्या उस घर की तरफ जाऊँ ?

ऐसे ही न जाने कितने प्रश्न मेरे मस्तिष्क में चक्कर काट रहे थे कि वैटर ने घंटी बजाई  वह  न्यूज पेपर देने आया था । मेरे विचारों को धरा पर उतरने का अवसर मिला गया । तत्क्षण मैं उसे बुला कर बालकनी के पास ले गई और हाथ में रस्सी बंधी उस बूढ़ी माँ को दिखाया । उस वैटर की कोई बहुत गहरी प्रतिक्रिया नहीं थी बल्कि वह बहुत ही सहज भाव बोला ओ इस पगली के बारे में पूछ रही हैं । यह बुढ़िया इनकी मां है, पागल हो गई है इसलिए यह लोग बाँध कर रखते हैं । अब मेरी जिज्ञासा तीव्र हो रही थी, मैं उस पागल माँ की व्यथा जानने के लिए बेचैन हो गई ।

मैंने उससे कहा – तुम मुझे उसके पागल होने की पूरी कहानी बताओ तो वह बोला – वो दीपक उसके बारे सब जानता है । उसका घर वहीं पर हैं। मैं उसको भेज दूंगा वह सब बता देगा ।

यह कह कर वह चला गया, पर मेरा मन अब किसी काम में  नहीं लग रहा था । पशु और इंसान को, वो भी एक माँ को एक ही श्रेणी में देखकर मैं पीड़ा से टूट रही थी क्योंकि मैं भी एक माँ हूँ । मैं उस माँ के लिए क्या करूँ यह सोच ही रही थी कि घंटी ने मुझे सचेत कर दिया । उठकर दरवाजा खोला तो देखा कि एक वैटर था जिसकी उम्र तीस पैंतीस के आस पास होगी बोला -आपने बुलाया है मैं दीपक हूँ । हाँ ! इधर बालकनी में आओ ।मैंने उसे बालकनी से उस बूढ़ी माँ को दिखाते हुए पूछा – इनके बारे तुम क्या जानते हो ?  अब तक वह बुढ़िया वहीं  बालकनी में जमीन पर सो गई थी। हाथ अब भी बंधा था ।

दीपक ने बताया कि यह कपूर साहब का घर है । यह कपड़े के बहुत बड़े व्यापारी थे। यह बुढ़िया इनकी माँ है । इनके पिता कुंदन कपूर की पत्नी हैं । इनके बड़े बेटे कपिल कपूर को सारा व्यापार पिता से विरासत में मिला है । इनके दो बेटे हैं छोटा बेटा निखिल कहीं विदेश में रहता है, जगह का नाम मुझे नहीं मालूम । यह बुढ़िया इनकी मां है वह भी बहुत पढ़ी लिखी है, किसी ऑफिस में काम करती थी । दो साल पहले इनके पिता कुंदन कपूर की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी । उस सदमे को इनकी माँ बर्दाश्त नहीं कर सकीं और अपना मानसिक संतुलन खो बैठी।

मैं बड़े ध्यान से दीपक की बात सुन रही थी । मैंने दीपक से पूछा कि इन्हें बाँध कर क्यों रखा है तो दीपक ने बताया कि अब यह सारे दिन घर के सामान को इधर – उधर फेंकती रहती हैं । कभी अपने पति की कुर्सी के पास जाकर उनसे बातें करती हैं । कहती हैं- जी ! चाय पियोगे और रसोई में आकर चाय बनाने लगती हैं । एक बार तो इन्होंने गैस खुली छोड़ दी थी, और उस पर खाली बर्तन रख दिया था । पूरे घर में आग लगाने से बच गई, सिर्फ रसोईघर का थोड़ा हिस्सा जल गया था । कभी घर से भाग जाती हैं । इसलिए यह लोग बांध कर रखते हैं ।

विदेश में रहने वाले बेटे के बारे पूछने पर दीपक ने बताया कि उसने माँ और भाई से संबंध तोड़ दिया है। एक बार माँ के रख रखाव को लेकर ही दोनों भाइयों के बीच बहुत झगड़ा हो गया था। तब से दोनों के बीच बातचीत भी खत्म हो गई। दीपक अपनी बात कहकर चला गया । उसे अपना काम करना था, पर मैं मूर्तिवत उसी स्थान पर खड़ी बहुत देर तक सोचती रही।

दीपक से सारी कहानी सुनने के बाद मैं पीड़ा से कराह रही थी। मुझे लगा कि वह माँ मैं हूँ । आज हर बूढ़ी माँ की यही दशा है। जब तक पति के साथ है तब तक ठीक है । अकेले होते ही उसकी जिंदगी एक पशु से भी बेकार हो जाती है । बचपन में वह जिन बच्चों को अपनी छाती से लगाए घूमती थी वही बच्चे उसे बुढ़ापे रस्सी से बांध कर रखते हैं । इस अव्यक्त पीड़ा को सिर्फ एक माँ ही समझ सकती है वह भी जिसने पचास का दशक पार कर लिया हो और बच्चे विदेश में रहते हो ।

जब मेरी विचार धारा टूटी तो मेरी निगाह फिर उस बालकनी पर गई । दस बज चुके थे । बालकनी में धूप गहरा रही थी । गर्मी के दिन थे । पालतु कुत्ता और बूढ़ी माँ दोनों ही जमीन पर सो रहे थे । अनायास ही मेरी आँखों से अश्रुधारा बह रही थी । मैं अपनी मजबूरी को कोस रही थी। कुछ समय बाद बुढ़िया की बहु उस घर की मालकिन आई और दोनों की रस्सी पकड़ कर अंदर ले गई । मैं अव्यक्त पीड़ा लिए एकटक देखती रही ।

निशा गुप्ता, तिनसुकिया, असम

 

*डॉ. निशा नंदिनी भारतीय

13 सितंबर 1962 को रामपुर उत्तर प्रदेश जन्मी,डॉ.निशा गुप्ता (साहित्यिक नाम डॉ.निशा नंदिनी भारतीय)वरिष्ठ साहित्यकार हैं। माता-पिता स्वर्गीय बैजनाथ गुप्ता व राधा देवी गुप्ता। पति श्री लक्ष्मी प्रसाद गुप्ता। बेटा रोचक गुप्ता और जुड़वा बेटियां रुमिता गुप्ता, रुहिता गुप्ता हैं। आपने हिन्दी,सामाजशास्त्र,दर्शन शास्त्र तीन विषयों में स्नाकोत्तर तथा बी.एड के उपरांत संत कबीर पर शोधकार्य किया। आप 38 वर्षों से तिनसुकिया असम में समाज सेवा में कार्यरत हैं। असमिया भाषा के उत्तरोत्तर विकास के साथ-साथ आपने हिन्दी को भी प्रतिष्ठित किया। असमिया संस्कृति और असमिया भाषा से आपका गहरा लगाव है, वैसे तो आप लगभग पांच दर्जन पुस्तकों की प्रणेता हैं...लेकिन असम की संस्कृति पर लिखी दो पुस्तकें उन्हें बहुत प्रिय है। "भारत का गौरव असम" और "असम की गौरवमयी संस्कृति" 15 वर्ष की आयु से लेखन कार्य में लगी हैं। काव्य संग्रह,निबंध संग्रह,कहानी संग्रह, जीवनी संग्रह,बाल साहित्य,यात्रा वृत्तांत,उपन्यास आदि सभी विधाओं में पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। मुक्त-हृदय (बाल काव्य संग्रह) नया आकाश (लघुकथा संग्रह) दो पुस्तकों का संपादन भी किया है। लेखन के साथ-साथ नाटक मंचन, आलेखन कला, चित्रकला तथा हस्तशिल्प आदि में भी आपकी रुचि है। 30 वर्षों तक विभिन्न विद्यालयों व कॉलेज में अध्यापन कार्य किया है। वर्तमान में सलाहकार व काउंसलर है। देश-विदेश की लगभग छह दर्जन से अधिक प्रसिद्ध पत्र- पत्रिकाओं में लेख,कहानियाँ, कविताएं व निबंध आदि प्रकाशित हो चुके हैं। रामपुर उत्तर प्रदेश, डिब्रूगढ़ असम व दिल्ली आकाशवाणी से परिचर्चा कविता पाठ व वार्तालाप नाटक आदि का प्रसारण हो चुका है। दिल्ली दूरदर्शन से साहित्यिक साक्षात्कार।आप 13 देशों की साहित्यिक यात्रा कर चुकी हैं। संत गाडगे बाबा अमरावती विश्व विद्यालय के(प्रथम वर्ष) में अनिवार्य हिन्दी के लिए स्वीकृत पाठ्य पुस्तक "गुंजन" में "प्रयत्न" नामक कविता संकलित की गई है। "शिशु गीत" पुस्तक का तिनसुकिया, असम के विभिन्न विद्यालयों में पठन-पाठन हो रहा है। बाल उपन्यास-"जादूगरनी हलकारा" का असमिया में अनुवाद हो चुका है। "स्वामी रामानंद तीर्थ मराठवाड़ा विश्व विद्यालय नांदेड़" में (बी.कॉम, बी.ए,बी.एस.सी (द्वितीय वर्ष) स्वीकृत पुस्तक "गद्य तरंग" में "वीरांगना कनकलता बरुआ" का जीवनी कृत लेख संकलित किया गया है। अपने 2020 में सबसे अधिक 860 सामाजिक कविताएं लिखने का इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। जिसके लिए प्रकृति फाउंडेशन द्वारा सम्मानित किया गया। 2021 में पॉलीथिन से गमले बनाकर पौधे लगाने का इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। 2022 सबसे लम्बी कविता "देखो सूरज खड़ा हुआ" इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। वर्तमान में आप "इंद्रप्रस्थ लिटरेचर फेस्टिवल न्यास" की मार्ग दर्शक, "शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास" की कार्यकर्ता, विवेकानंद केंद्र कन्या कुमारी की कार्यकर्ता, अहिंसा यात्रा की सूत्रधार, हार्ट केयर सोसायटी की सदस्य, नमो मंत्र फाउंडेशन की असम प्रदेश की कनवेनर, रामायण रिसर्च काउंसिल की राष्ट्रीय संयोजक हैं। आपको "मानव संसाधन मंत्रालय" की ओर से "माननीय शिक्षा मंत्री स्मृति इरानी जी" द्वारा शिक्षण के क्षेत्र में प्रोत्साहन प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया जा चुका है। विक्रमशिला विश्व विद्यालय द्वारा "विद्या वाचस्पति" की उपाधि से सम्मानित किया गया। वैश्विक साहित्यिक व सांस्कृतिक महोत्सव इंडोनेशिया व मलेशिया में छत्तीसगढ़ द्वारा- साहित्य वैभव सम्मान, थाईलैंड के क्राबी महोत्सव में साहित्य वैभव सम्मान, हिन्दी साहित्य सम्मेलन असम द्वारा रजत जयंती के अवसर पर साहित्यकार सम्मान,भारत सरकार आकाशवाणी सर्वभाषा कवि सम्मेलन में मध्य प्रदेश द्वारा साहित्यकार सम्मान प्राप्त हुआ तथा वल्ड बुक रिकार्ड में दर्ज किया गया। बाल्यकाल से ही आपकी साहित्य में विशेष रुचि रही है...उसी के परिणाम स्वरूप आज देश विदेश के सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में उन्हें पढ़ा जा सकता है...इसके साथ ही देश विदेश के लगभग पांच दर्जन सम्मानों से सम्मानित हैं। आपके जीवन का उद्देश्य सकारात्मक सोच द्वारा सच्चे हृदय से अपने देश की सेवा करना और कफन के रूप में तिरंगा प्राप्त करना है। वर्तमान पता/ स्थाई पता-------- निशा नंदिनी भारतीय आर.के.विला बाँसबाड़ी, हिजीगुड़ी, गली- ज्ञानपीठ स्कूल तिनसुकिया, असम 786192 [email protected]