नज़रों की ख़ता है
नज़रों की खता है न तिरी न मोरी |
बंधन प्रीत की है नहीं कोई चोरी |
ना मैं तोड़ पाई ना तुम मोड़ पाये ,
स्वयं मजबूत होती गई प्रीत डोरी |
काग़ज़ हैं कुआंरे आओ कुछ लिखो
कहो तो मैं करूँ बिनती करजोरी
माँग सिंदूरी सजाओ शब्दों से
कि खनके चूड़ियाँ कलाइयाँ गोरी
तुम लिखो गीत मैं लिखूंगी गीतिका
कभी-कभी अक्षरों से कर बलजोरी
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©किरण सिंह