साथ अपने हमेशा पाओगे
साथ अपने हमेशा पाओगे
मुश्किलों में जो आजमाओगे
दर्द को बाँट लीजिए वर्ना
बाँध के जैसे टूट जाओगे
कैसे आब-ए-हयात पाओगे
ज़हर औरों को जो पिलाओगे
भूल जाए हमारी उल्फ़त जो
दिल वो आखिर कहाँ से लाओगे
नेकियों में बढ़ोतरी होगी
जो गरीबों को हक़ दिलाओगे
बेरुखी छोड़ दीजिए ‘माही’
और कितना हमें सताओगे
महेश कुमार कुलदीप ‘माही’
जयपुर, राजस्थान