कविता : वर्षा की बूंदों से
वर्षा की बूंदो से नदिया
उमड़-घुमड़ भर जाती हैं
कल-कल ध्वनि मे नदिया
अपनी गीत सुनाती हैं
देख जवानी नदियो की
जी को बड़ा डराती हैं
नहरे भी उफाने भरते
आपस मे जल टकराते हैं
खेतो की हरियाली देख
मन को बडा लुभाते हैं
सोलह श्रृंगारो से सुसज्जीत
बाग – बगीचे मन मोहे हैं
इसी तरह झीलो झरनो की
अद्भुत रूप निराली हैं
प्रकृति ने इस जग को
चार चाँद लगा दी है|
— बिजया लक्ष्मी