राजनीति

राहुल की किसान यात्रा से कांग्रेस की बदहाली उजागर

2017 के विधानसभा चुनावों के मद्देनजर अब प्रदेश में तीसरे व चौथे नंबर की लड़ाई लड़ रही कांग्रेस पार्टी मेें भी नये सिरे से जान फूंकने का प्रयास किया जा रहा है। कांग्रेस के सलाहकार प्रशांत किशोर की रणनीति अब सामने आने लगी है। ‘प्रियंका लाओ कांग्रेस बचाओ’ के नारों के बीच फिलहाल कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ही उ.प्र. में कांग्रेस का 27 साल से चल रहा वनवास खत्म कराने के लिए किसान यात्रा और नये नारों तथा तेवरों के साथ सड़क पर संघर्ष को उतर पड़े हैं। राहुल की किसान यात्रा से कई बातें साफ हो रही हैं। वे पूरी तरह से पीएम मोदी की ही नकल कर रह हैं। राहुल को भाषण करना व जनमानस को प्रभावित करना अभी तक नहीं आ पाया है। राहुल से अच्छे भाषण तो कांग्रेस के दिग्गज नेता श्रीमती शीला दीक्षित व नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर तक दे रहे हैं। राहुल की प्रचार शैली पूरी तरह से मोदी विरोध पर ही केंद्रित है और सपा-बसपा जैसे दलों पर नरम तेवर दिखा रहे हैं। कांग्रेस की रणनीति से साफ लग रहा है कि अगर आवश्यकता पड़ी तो 2017 के विधानसभा चुनाव परिणामों के बाद कांग्रेस अपना घिसा-पिटा भाजपा रोको अभियान शुरू कर देगी और उसे सत्ता में आने से रोकने लिए बिहार की तर्ज पर चुनाव बाद गठबंधन का रास्ता भी साफ करेगी। वर्तमान समय में राजनैतिक विश्लेषकों का स्पष्ट अनुमान है कि इस बार भाजपा के संख्या बल में पर्याप्त वृद्धि देखने को मिलेगी। यही कारण है कि सभी दलों के नेताओं के प्रचार में मोदी ही निशाने पर आ गये हैं। कुछ ऐसा ही नजारा लोकसभा चुनावों में भी दिखायी पड़ रहा था।

राहुल गांधी की किसान यात्रा फिलहाल पूर्वांचल पर ही केंद्रित है और कांग्रेस ने जानबूझकर पूर्वांचल को ही अपने विस्तार का केंद्र बनाया है। उसे पता है कि वाराणसी से पीएम मोदी लोकसभा सांसद चुने गये हैं। वहां पर उनका मजबूत जनाधार है ही। पूर्वांचल से ही भाजपा के कई सांसद मंत्री हैं। पूर्वांचल में सवर्णों का अच्छा खासा जनाधार है। श्रीमती शीला दीक्षित भी संभवतः वहीं से चुनावी मैदान में उतर सकती हैं। यही कारण है कि राहुल गांधी ने किसान यात्रा और खटिया पर चर्चा के नाम पर पूर्वांचल से ही अपना शिगूफा छोड़ दिया है।

प्रशांत किशोर ने जिस प्रकार की रणनीति बनायी है तथा अभी तक उसका जो हाल हुआ है मीडिया जगत और सोशल मीडिया में केवल जगहंसाई ही हो रही है। वहीं कांग्रेस के रणनीतिकार भी हैरान व परेशान हो गये हैं। खटिया पर चर्चा के नाम पर राहुल की जनसभाओं में जो भीड़ जुट रही है वह सारी की सारी खटिया ही लूटकर ले जा रही है। एक नहीं कई जिलों में इस प्रकार की वारदातें हो चुकी हैं। खटिया लूट कांड पर कांग्रेसियों के बचाव वाले बयान भी काफी बचकाना हैं। एक टीवी चैनल पर कांग्रेसी नेता राजबब्बर इस पर बड़ा गर्व महसूस कर रहे थे और कह रहे थे कि जनमानस ने खटिया लूटी नहीं अपितु उसे अपने सिर पर उठाकर ले गये हैं। लोकसभा चुनावों में मिली भारी पराजय के बाद राहुल गांधी में अचानक से किसान प्रेम व दलित प्रेम जाग उठा है। राहुल गांधी अचानक उदारवादी हिंदूू के रूप में भी अपने आप को दिखाना चाह रहे हैं।

कांग्रेस ने नारा दिया है ‘27 साल, यूपी बेहाल’। वहीं किसान यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने नया नारा दिया है ‘बिजली बिल हाफ, किसानों का कर्ज माफ’। राहुल गांधी उप्र में कांग्रेस के खोये जनाधार को वापस लाने के लिये जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं। इसके लिए वे कोई भी कोर-कसर बाकी नहीं रख रहे। सभी धर्मों और वर्गों के साथ अपने को जोड़ना चाह रहे हैं। आजमगढ़ में दरगाह पर चादर चढ़ाते हैं और मऊ में दलित के घर भोजन भी करते हैं, वहीं दूसरी ओर उसी प्रकार मिर्जापुर पहुंचकर मां विंध्यवासिनी के दर्शन भी करते हैं। राहुल गांधी अपनी यात्रा के दौरान अयोध्या भी पहुंचते हैं, जहां वे बड़ी चालाकी का प्रदर्शन करते हुए हनुमानगढ़ी के दर्शन तो करते हैं लेकिन मंदिर-मस्जिद विवाद से बचने का भी प्रयास करते हैैं। राहुल महंत ज्ञानदास आदि संतों का आर्शीवाद भी लेते हैं। कांग्रेस व राजनैतिक विश्लेषकों का अनुमान है कि यह सब कुछ सवर्ण मतदाताओं के वोटों का बंटवारा करने के लिए नाटक किया जा रहा है।

राहुल गांधी अपनी जनसभाओं में केवल और केवल मोदी पर ही निशाना साध रहे हैं। मोदी सरकार पूरी तरह से नाकाम बता रहे हैं। किसानों को भड़काते हुए कह रहे हैं कि पीएम मोदी केवल उद्योगपतियों का ही कर्ज माफ कर रहे हैं, जबकि हमने किसानों का 70 हजार करोड़ कर्ज माफ किया। जबकि हकीकत यह है कि आजादी के बाद देश में सबसे अधिक समय तक कांग्रेस व उसके गर्भ से निकले दलों का ही शासन रहा है। आज देश के किसानों की बदहाली के लिये यही लोग जिम्मेदार हैं, जो किसानों के नये मसीहा बनने को बेताब हैं। कांग्रेस पार्टी ने केवल किसान, गरीब और दलित प्रेम का फर्जी चोला ओढ़कर रखा है। राहुल की किसान यात्रा का एक सच यह भी है कि वे अपने मतदाता वर्ग को लुभाने के लिए केवल मुस्लिम बहुल और दलित समुदाय के बीच ही रोड शो व जनसभाओं आदि का आयोजन कर रहे हैं। जबकि श्रीमती शीला दीक्षित आदि का उपयोग केवल सवर्ण मतदाता को लुभाने के लिए किया जा रहा है।

राहुल गांधी व कांग्रेस के रणनीतिकार बड़ी चतुराईं के साथ अपने वोट बैंक को साधने का काम कर रहे हैं। राहुल गांधी की अगुवाई में चल रही देवरिया से दिल्ली तक की किसान यात्रा उनको गरीबों का रहनुमा दिखाने की तैयारी भर है। वे अपने हर भाषण में केवल यही बात सिद्ध करना चाह रहे हैं व जनता को बता रहे हैं कि पीएम मोदी की सरकार गरीबों, किसानों, दलितों और अल्पसंख्यकों की नहीं अपितु चुनिंदा उद्योगपतियों की ही सरकार है। वे किसानों को उपज का सही दाम दिलाने का सब्जबाग दिखा रहे हैं। वे यह नहीं बताते कि जब केंद्र में 65 साल से भी अधिक समय तक और उप्र में 35 साल से भी अधिक समय तक उनकी सरकार रहीं, तब उनकी सरकारों ने यह सब क्यों नहीं किया, जिसके कारण आज देश के हालात बिगड़ते चले जा रहे हैं। उप्र कांग्रेस के प्रभारी गुलाम नबी आजाद एक टीवी साक्षात्कार में दावा कर रहे हैं कि उनकी पार्टी किंगमेकर नहीं अपितु किंग बनने के लिए चुनावी मैदान में उतर रही है।

वहीं दूसरी ओर अभी तक जितने भी सर्वे सामने आये हैं, उनके हिसाब से कांग्रेस चैथे पायदान पर भी बहुत ही बुरी हालत में है, जबकि लडाई सपा, बसपा व भाजपा के बीच होने जा रही है। यह बात अलग है कि अब कांग्रेस के रणनीतिकार प्रशांत किशोर और कांग्रेस आलाकमान के चलते प्रदेश में कांग्रेस की डूबती नैया को बचाने के लिए सभी कांग्रेसी दिग्गज चुनावी मैदान में डट गये हैं। मुख्यमंत्री पद की दावेदार श्रीमती शीला दीक्षित ने खराब स्वास्थ्य के बाद भी धुआंधार प्रचार प्रारम्भ कर दिया है और राजबब्बर, गुलाम नबी आजाद आदि भी जुट गये हैं। कई जगहों पर भीड़ दिखलायी पड़ रही है तो कही भीड़ गायब भी हो रही है। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी के सभी नेता दावा कर रहे हैं कि रैलियों व जनसभाओं में उमड़ रही भारी भीड़ से विपक्षी दलों में हताशा भर गयी है।

कांग्रेस अपनी जनसभाओं में एक बार फिर लोकलुभावन वादे करके जनता को आकर्षित करने का प्रयास कर रही है। आज कांग्रेस मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित करने के बाद भी लड़ाई में चैथे पायदान से आगे नहीं बढ़ पा रही है। जबकि कांग्रेस व गांधी परिवार के लिये यह लड़ाई अपने राजनैतिक अस्तित्व व साख को बचाये रखने के लिए हो रही है। उप्र में यदि किसी कारणवश भाजपा एक बार फिर सत्ता के पायदान तक पहुँचने में विफल रहती है, तो उसमें कांगे्रस अपना सबसे बड़ा योगदान बतायेगी और वह भी राहुल गांधी की किसान यात्रा और रोड शो को। वैसे भी राहुल गांधी की पूरी यात्रा पर यदि गौर किया जाये तो वह नकारात्मक प्रचार शैली को ही अपना रहे हैं। उसका कारण यह है कि कांग्रेस की विगत सरकारों ने देश के विकास में कोई खास नहीं किया हैै। आज देश के सामने अधिकांश समस्याओं की जड़ यही गांधी परिवार है, जिसका खामियाजा अब राहुल गांधी व कांग्रेस को भुगतना पड़ रहा है। यदि आगामी चुनावों में कांग्रेस के हाथ से कुछ और राज्य निकल जाते हैं। तब गांधी परिवार के सामने एक बहुत बड़ी समस्या पैदा हो जायेगी, क्योंकि कांग्रेस में बगावत के स्वर और खुलकर सामने आ सकते हैं।

मृत्युंजय दीक्षित