हास्य-व्यंग्य : माल रोड पर लड़की
पिछले दिनों एक ऐतिहासिक साहित्य सम्मेलन के सिलसिले में शिमला जाना हुआ | ऐतिहासिक होता भी क्या लेकिन हमारी शमूलियत थी सो सम्मेलन की क्या मजाल ! सो होना पड़ा बिचारे को | हम घर से चले तो कुछ दूरी पर शिमला से लगभग पचास किलोमीटर पीछे ही सोलन नगरी के पास से ही हमारे ह्रदय के तार बजने लग पड़े | राष्ट्रीय राजमार्ग के दोनों छोरों पर दस दस मीटर की दूरी पर बड़े बड़े होर्डिंग दृष्टिगोचर होने लगे | होर्डिंग पर कुछ छोटे मोटे कवियों , व्यंग्यकारों के एन बीचों बीच हमारा हँसता खिलखिलाता आदमकद चित्र लगा था | चित्र को देखते ही हमारे कोलर खुद ब खुद खड़े हो गए | एक दम फसक्लास सूट-बूट पहने हम शुक्रिया-शुक्रिया की मुद्रा में खड़े थे |
क्रिकेट के मैदान में बनी पिच की तरह हमारे सर के बीचों बीच हल्के काले बालों की एक पट्टिका बनी हुई थी | दोनों और का घास मानों किसी काली भेंस ने चर लिया था | हम अपने इस भयावह चित्र को देख कर मन ही मन मूछों पर ताव दे रहे थे | हमारा डिरेवर एक नजर उन होर्डिंग की तरफ देखता और फिर हमारे चेहरे की लाली | जब देखते देखते थक गया तो उससे रहा न गया और बोल बैठा “आप वाकई ग्रेट हो उस्ताद |” हमने भी हाँ में मुंडी झटक दी | कुल मिलकर बताऊँ तो इसी जद्दोजहद में हम दोनों शिमला पहुँच लिए | अभी कार्यक्रम में बड़ा समय बाकी था सो हमने सोचा क्यों न माल रोड़ पर घूम लिया जाए | हल्की बूंदा बांदी शुरू हो गई थी , हम समझ गए थे हमारे शिमला आगमन का शुभ संकेत दे दिया है प्रभू ने | हमने डिरेवर की ओर आँख तरेरी और उसने तुरंत हमारे प्रोफेसरी छाते के नाक को दबा दिया | ज्यों हम सुबह बिस्तर से दोनों बाहें उठा कर उठते हैं ठीक उसी तरह छाता खुला और हमारे सर श्री पर शेष नाग की तरह तन गया |
मालरोड़ का एक चक्कर लगा कर ज्यों ही हम लिफ्ट के पास से वापस मुड़े , एक सुंदर युवती पीछे से हमारी कमर में हाथ डालते हुए बोली “हेल्लो सर |” हम एक मिनट को शर्माए ,सक पकाए फिर हमने भी थोड़ी हिम्मत करके उसकी पतली कमर में हाथ पहना दिया |
लड़की बोली “ सर ! मैं न … आपकी इत्ती बड़ी फेन हूँ की बस बोल नी सकती !” मैंने बीच से ही पकड़ते हुए कहा “लेकिन तुम तो बोल रही हो !” अक्चुअली सर , मैं आपका ही शो देखने के लिए शिमला से आई हूँ |” वह थोड़ा रुक कर बोली तो मैंने उसको घूर कर निहारा | “आई मीन छोटा शिमला सर !” उसने अपनी बात पूरी की | मेरे कलेजे पर गुनगुनी ठण्ड पड़ी | हम आगे चल पड़े तो वह भी मेरे छाते की बाँहों में समाते हुए मेरी कमर से झूलते हुए चल पड़ी , छाता अब उसने थाम लिया था | एक पल को मन में ख्याल आया गोली मारो शो- वो को तुम इसी तरह मेरे साथ घूमती रहो बस ! उसके कोमलांग मेरे अर्ध कोमल बदन से घर्षण पा कर मेरे दिल का मंगल बुध कर रहे थे | इस दुर्लभ प्राय दुर्घटना से मुझे मालरोड़ का अर्थ भी समझ आ रहा था | इसी अन्तराल में कुछ और नवयोवनाएं मेरे करीब से गुजरती हुईं मेरे काँधे से कान्धा मिलाने का सफल प्रयास करते हुए कमर तक झुक कर मुझे विश कर रही थीं | मैं भी बड़े अदब से तुरंत झुक कर मुस्कराते हुए उनकी विश का जवाब दे रहा था |
सम्मेलन का समय भी निकट पहुँच चुका था और हम भी मालरोड़ से होते हुए रिज और फिर स्केंडल पॉइंट पर पर आ धमके | बुजुर्गों से सुना था कि कुछ स्थान भूतिया होते हैं लेकिन आज तो साक्षात देख रहा था | पता नहीं क्या हुआ इस स्थान पर पहुँचते ही मैं खुद पर कंट्रोल ही नहीं कर पाया और मैंने उस कमसिन कुँवारी गर्ल को बाहों में भरते हुए कस्स कर किस कर लिया |
“फड़ा…क !!!” की आवाज के साथ एक झन्नाटेदार तमाचा मेरे गाल पर पड़ा और मेरी आँख खुल गई | मैं गाल पकड़ कर उठा बैठा तो सामने श्रीमती जी कमर में छुन्नी बांधे , हाथ में झाडू लिए खड़ी घडी की और इशारा कर रही थी | देखा तो सुबह के दस बज चुके थे |
— अनन्त आलोक