कविता : त्रासदी जीवन की
किस किस नाम से
नहीं पुकारा तुमने
गिनने पर आऊँ
तो गिन भी ना पाऊँ
सच तो ये है….
कि इनके बीच
मैं अपना वो नाम
भूल गई….
जो कभी मेरी
पहचान हुआ करती थी
जिसे मेरे माँ-बाबा ने
रखा था….
उतने हीं प्यार से
जिस लाड़ से
तुमने आज….
अपनी बेटी का नाम
रखा है….
मगर आज जब किसी ने
तुम्हारी बेटी को
कुछ कह दिया….
तो किस तरह तुमने
आसमान को
सर पर उठा लिया
पल भर में भूल गए
मेरे दर्द को….
मेरी पहचान को
मेरे जज़्बात को
भूल गए कि मैं भी….
किसी की बेटी हूँ
मेरे माँ-बाबा ने भी
उसी लाड़ से….
मेरी परवरिश की होगी
जिस लाड़ से तुम आज
अपनी बेटी को पाल रहे हो
और बहुत अरमान से
तुम्हें….
मेरे जीवनसाथी के रूप में
चुना होगा….
उन्हें क्या पता था
कि तुम….
अपने शब्दों के बाण से
उनकी बेटी के वजूद को
चिथड़े चिथड़े कर दोगे…!!!
— रश्मि अभय