कविता

गंगा तट पर

“मैं” से हम हो जाऊँगा
गंगा तट पर
ये सारे भ्रम धो जाऊँगा
गंगा तट पर
कश्ती गम की डुबो जाऊँगा
गंगा तट पर
पलके कई भिगो जाऊँगा
गंगा तट पर
दुनिया की खातिर रो जाऊँगा
गंगा तट पर
माटी तेरा हो जाऊँगा
गंगा तट पर
खुद ही खुद में मिल जाऊँगा
गंगा तट पर
लबों को अपने सिल जाऊँगा
गंगा तट पर
कर्तृव्य पूरे कर जाऊँगा
गंगा तट पर
भव सागर से तर जाऊँगा
गंगा तट पर
माता पिता स्वाभिमान मेरा
पूरी इच्छा कर जाऊँगा
गंगा तट पर
जिंदगी जीना जरूरी सबके लिए कर जाऊँगा
गंगा तट पर
कहानी का सार नहीं
पूरी इसे कर जाऊँगा
गंगा तट पर
शब्द शब्द समेटे हैं
कुछ कवितायें अधुरी कर जाऊँगा
गंगा तट पर
स्नेह सारे बिखर जायेंगे
गंगा तट पर
धुंधली सच्चाई निखर जायेगी
गंगा तट पर
अब तो लीन हूँ राम नाम में
अकेला सब कुछ सह जाऊँगा
गंगा तट पर
अकेला सत्य ही रह जायेगा
गंगा तट पर
आग के करिब ना अपने आयेंगे
गंगा तट पर
सब राम नाम सत्य कह जायेंगे
गंगा तट पर
दुखों के सूरज का ढलना होगा
गंगा तट पर
सुखों के सूरज का खिलना भी होगा
गंगा तट पर
एक वहम शरिर का जलना होगा
गंगा तट पर
भक्त भगवान का मिलना भी होगा
गंगा तट पर
हाँ !!!
राख होकर बह जाऊँगा
गंगा तट पर
“मैं “से हम हो जाऊँगा
गंगा तट पर

परवीन माटी

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733