कच्ची कली को राहगीर ने कैसे तोड़ा होगा तुम क्या जानो मैंने अपना गांव कैसे छोड़ा होगा उस नीम शीशम सरसों की याद आई है पैसा कमा लिया बहुत मगर फिर भी तन्हाई है वह शहतूत के जामुन के पेड़ सुहाने लगते थे पानी वाले दिन चंद दोस्त खेत में सारी रात जगते थे खेत […]
Author: प्रवीण माटी
किस्सा
एक किस्सा है गांव का की बेटे की चाह रखने वाले लोगों ने लड़की को आग लगा दी। एक नन्हीं परी लेती है जन्म एक परिवार में फूलती है कली सी वो खिलती है उसी परिवार में वो बढ़ती है हंसाती है कभी मां को कभी भाई को कभी पापा को छोटी-छोटी बातें सुनाती […]
परिस्थितियां
कुछ परिस्थितियां ऐसी होती हैं जिन्हें आप बदल भी नहीं सकते बहाव के साथ ही जाना होता है आप फिर संभल नहीं सकते लाख जतन के बाद भी उनसे बाहर भी नहीं आ सकते इस वक्त का विलाप किसी के समक्ष नहीं गा सकते इसमें जीना भी किसी मुश्किल भरी उलझन से कम नहीं है […]
साथ-साथ
रास्ता लंबा था मगर हम चले थे साथ साथ आसान तो कुछ भी नहीं था शिकवे और गिले के साथ-साथ मुश्किलें थी बहुत कांटो भरी दोनों के पैरों में छाले थे साथ-साथ अरमानों का गुलदस्ता भी था ख्वाब भी हमने पा लेते साथ साथ ठहराव था ही नहीं कहीं सारे रास्ते पार किए थे साथ-साथ […]
शाम का ख्याल
इस शाम से मैं कुछ बातें करने के बाद अब अलग रहना चाहता हूं बस यही कहना चाहता हूं कि अगर मैं आज अकेला हूं तो ही मैं अलबेला हूं गज़ब आदमी होगा! जिसने भी धकेला हूं प्रपंचों से दूर ना कोई मालिक ना हुजूर! सारा का सारा दिन,सारी मेरी रात है तो मेरे लिए […]
कुछ तो है!
कुछ तो है! फलक पर चांद नहीं है हवाओं में कोई शोर नहीं कैसे उड़ा आखिर में वो बंधी उससे कोई डोर नहीं एक अजीब सी कशमकश उठी मन में धधकती आग लगी हो जैसे कहीं तन बदन में कुछ तो है! ये रास्ते भी अकेले हैं गली सुनसान नजर आती है आया एक झोंका […]
रख
सुन मुसीबतों के दौर में तू धैर्य की ढाल रख वो आएंगे वो जाएंगे अपना ह्रदय विशाल रख कर अपना रखरखाव जिंदगी के उतार-चढ़ाव हो मंजिल पर बस नजर ऐसा ये ख्याल रख युद्ध के लिए तैयार हो अपनी तीर कमान रख योद्धा सा हो जिगर तेरा अपने सारे सामान रख समर में कूदने से […]
हम
ना पाने की जिद्द ना खोने का ग़म इस सफर में अब ऐसे हो गये हैं हम ना उम्मीद किसी से ना अब कोई चाहत है अकेलापन साथी अपना खैर!अब तो राहत है ना मैं किसी का हुआ ना मेरी ही है अब कोई शुन्य के आगोश में मेरी आंखें खूब सोई ना मिलना किसी […]
कहानी
कहानियों के किरदार सभी मेरा-तेरा करते हैं हम हैं दरबान इधर में क्या किसी से डरते हैं? रोज-रोज की उठापटक में सुझावों का कलेश हुआ नाम की खातिर देखो अब भाई-भाई में द्वेष हुआ अंहकार की कीमत होगी मौन का अपना मान सांसों के बदले सपने निकल न जायें प्राण अपना महत्व क्या बतलाना! […]
कुसूरवार
कौन है? कुसूरवार! कहाँ जा रहे हम आँखों वाले अंधे कोई भी रास्ता पहचानता नहीं भीडभाड़ बहुत है यायावरों की मगर एक दूसरे को कोई जानता नहीं किताबों में कुछ पन्ने रह गये हैं सभ्यता,संस्कृति के नाम पर ईमानदारी लकड़हारे तक सिमित है संवेदनहीन लड़ रहे जाम पर दरार बहुत बड़ी […]