कविता

साथ-साथ

रास्ता लंबा था मगर
हम चले थे साथ साथ
आसान तो कुछ भी नहीं था
शिकवे और गिले के साथ-साथ

मुश्किलें थी बहुत कांटो भरी
दोनों के पैरों में छाले थे साथ-साथ
अरमानों का गुलदस्ता भी था
ख्वाब भी हमने पा लेते साथ साथ

ठहराव था ही नहीं कहीं
सारे रास्ते पार किए थे साथ-साथ
आज क्यों या अकेलापन है
हम कभी जिए थे साथ साथ

उम्मीदों का कारवां था
पूरा करने का वादा किया था साथ साथ
हमने हार मानी ही नहीं थी
वक्त से भी तो वक्त लिया था साथ साथ

तुम आज क्यों नहीं हो
क्या बस वहम था मेरा वो साथ-साथ
खुशियां चंद रोज की मेहमान
बस क्या गम ही था हमारे साथ साथ

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733