कविता

मुकदमा

अदालत की दहलीज पर

एक मुकदमा मेरा भी

क्या कर पाएगा

रिश्ते नातों का फैसला

कागज की लकीरों पर

मैंने घर टूटते देखें

मां बाप कटघरे में

मैंने भाई-भाई फूटते देखें

जहां होता था घर कभी

वहां कौवे घूमते देखे

मौत की शहनाई पर

मैंने लोग झूमते देखें

मंजिल की तलाश में

रास्तों पर राहगीर रुकते देखें

क्या है अब सब दिमाग वाले हैं

दौलत की तराजू में रिश्ते झुकते देखे

जानते हैं मानता कोई नहीं

सुने-सुनाए लोग सुनाऐं नए पुराने किस्से

जमीन तो बांट ली गई

अब देखो कैसे होंगे मां के भी हिस्से

— प्रवीण माटी

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733