13 दिसंबर
13 का वो उजला दिन
आतंक की वो छाया थी
दामन बचा लिया संसद का
आधे घंटे में
बेशक तिरंगे में लिपटी काया थी
मंसूबे उनके
कफन के साथ ही खाक हूए
इतिहास के पन्नों पर छा गये
देशभक्त महान
भारतभूमि की वो राख हूए
आँखें नम
तो गर्व से सीना चौड़ा हुआ जाता है
नतमस्तक हूँ जवानों तुम पर
पूरा भारतवर्ष एक स्वर में गाता है
तुम थे,तुम हो, तुम रहोगे
दिलों में सबके
देख तुम्हारी दिलेरी
कई दफन हुए
बिलों में दुबके
कुर्बानी की आवाज़ तुम्हारी
आज गुंजे है हर कहीं
गद्दारों!!!!!!!!!!
इतने सीने आगे खडे़ है
इस मंदिर के
जितने तुम्हारे पास हथियार नहीं
मैं!!!!!!
कहानी तुम्हारी
हर गली-गुचे मैं गाऊँगा
सोते को जगाऊँगा
नेता को बतलाऊँगा
हर युवा को समझाऊँगा
बुढे मार्गदर्शक के पास
बैठकर गुनगुनाऊँगा
कि
अमर है वीर जवान
तुलना करूँ तुम्हारी मैं
कर्णों में
बहुत कम पड़ जाएँगे ये शब्द
मगर अर्पित हैं चरणों में
आह्वान
इन देशभक्तों की कुर्बानी
हर कोने में गुंजाये
कलम ये बस यूहीं
लिखती जाये
कवि – परवीन माटी