कविता : अमूल्य कृति हैं बेटियां
ईश्वर की
अमूल्य कृति हैं बेटियाँ
जो सींचती हैं
हर-एक घर को
अपने स्नेहसिक्त आँचल से
बेटियां
जिस घर में
लक्ष्मी बनकर आती हैं
महकने लग जाती हैं
उनकी जीवन -बगियाँ
बेटो से नहीं कम
होती हैं बेटियाँ
जानती हैं वह
समझदारी से
रिश्तो को हैं निभाना
बेटियाँ नहीं
कोई अभिशाप
उन माँ-बाप को कौन समझाए ?
जो बेटों की चाहत में
गर्भ में ही
बेटियों का क़त्ल कर देते हैं l
बेटियां
होती हैं घर की शान
जब भी आती हैं
उजाला बिखेर देती हैं
कौन कहता हैं बेटियां
दूसरों की हैं अमानत
जरूरतों के वक्त वह
बेटों से भी नहीं हैं कम ,
बेटियाँ हैं घर की इज्जत
जो बांटती हैं अपना संस्कार
माँ की प्रति छाया बनकर
नई पीढ़ी की रखती हैं नींव l
— ऋता सिंह ‘सर्जना’