ग़ज़ल
हर लफ्ज़ कलेजे को जब चीर के निकलेगा
इक़रारे मुहब्बत फिर तस्वीर से निकलेगा ।
इक बार इजाजत गर , मिल जाये जवानों को
दुश्मन है छुपा जो भी , कश्मीर से निकलेगा ।
मजलूम ,गरीबो को इन्साफ की चाहत है
हल झगड़ो का शायद शमशीर से निकलेगा
कुछ ख्वाब अधूरे है आजादी के अब भी
कब अम्न हवाओं की तासीर से निकलेगा ।
क्यूँ धर्म छुपाते हो , कुछ राज नही छुपते
जब इश्क हुआ बागी ,जंजीर से निकलेगा ।
— धर्म पाण्डेय