“चल अब लौट चलें”
गीतात्मक मुक्त काव्य,
“चल अब लौट चलें”
अब हम लौट चलें, चल घर लौट चलें
चाखी कितनी बानगी, चल अब लौट चलें…..
खट्टा मीठा, कड़वा तीखा
स्वाद सुबास, निस्वाद सरिखा
ललके जिह्वा, जठर की अग्नि
चातक चाहे, प्रीत अनोखा॥…… अब हम लौट चलें, चल घर लौट चलें………..
कलरव करता, उड़ें विहंगा
घास घोसला, चूजा संगा
लाए वापस, बोझिल दाना
चोंच कराए, पल पल पंगा॥…… अब हम लौट चलें, चल घर लौट चलें………..
मान मान चित, मानों मांझी
सूर्य प्रकाश, शमा जल सांझी
प्रेम विवश जल, जाए पतिंगा
मीरा राधा। हीरा राँझी॥…… अब हम लौट चलें, चल घर लौट चलें………..
कठिन तपस्या, चाह सुलभ है
चलते जाना, डगर दुर्लभ है
खोकर पाना, पाकर खोना
राग विरागा, जगमग नभ है॥….. अब हम लौट चलें, चल घर लौट चलें………..
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी