मुक्तक/दोहा

दोहे “रहा पाक ललकार”

बैरी है ललकारता, प्रतिदिन होकर क्रुद्ध।
हिम्मत है तो कीजिए, आकर उससे युद्ध।।

बन्दर घुड़की दे रहा, हो करके मग़रूर।
लेकिन शासक देश के, बने हुए मजबूर।।

गाँधी जी ने कब कहा, हो मिन्नत-फरियाद।
शठ को करवा दीजिए, दूध छठी का याद।।

पामर करवाता यहाँ, दंगे और फसाद।
करो अन्त नापाक का, दूर करो अवसाद।।

हाथ जोड़कर तो नहीं, हुआ देश आजाद।
क्रान्तिकारियों ने भरा, जन-गण में उन्माद।।

आजादी के बाद से, रहा पाक ललकार।
बदले में हम कर रहे, केवल सोच-विचार।।

आकाओं की भूल से, अब तक हैं बेचैन।
ऐसे करो उपाय अब, रहे चमन में चैन।।

हठधर्मी से ही हुआ, निर्मित पाकिस्तान।
झेल रहा इस दंश को, अब तक हिन्दुस्तान।।

बिगड़ा अब भी कुछ नहीं, बन्द करो अध्याय।
सही समय अब आ गया, सोचो ठोस उपाय।।

कदम-कदम पर जो सदा, करता है उत्पात।
उस बैरी से अब कभी, मत करना कुछ बात।।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

*डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)। सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार, सन् 2005 से 2008 तक। सन् 1996 से 2004 तक लगातार उच्चारण पत्रिका का सम्पादन। 2011 में "सुख का सूरज", "धरा के रंग", "हँसता गाता बचपन" और "नन्हें सुमन" के नाम से मेरी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। "सम्मान" पाने का तो सौभाग्य ही नहीं मिला। क्योंकि अब तक दूसरों को ही सम्मानित करने में संलग्न हूँ। सम्प्रति इस वर्ष मुझे हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना के द्वारा 2010 के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार के रूप में हिन्दी दिवस नई दिल्ली में उत्तराखण्ड के माननीय मुख्यमन्त्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा सम्मानित किया गया है▬ सम्प्रति-अप्रैल 2016 में मेरी दोहावली की दो पुस्तकें "खिली रूप की धूप" और "कदम-कदम पर घास" भी प्रकाशित हुई हैं। -- मेरे बारे में अधिक जानकारी इस लिंक पर भी उपलब्ध है- http://taau.taau.in/2009/06/blog-post_04.html प्रति वर्ष 4 फरवरी को मेरा जन्म-दिन आता है