टॉफी
उछल उछल कर बिंदियाँ के पैरों में दर्द होने लगा था I पर उसके नन्हें-नन्हें हाथ काँच के उन मर्तबानों तक पहुँच ही नहीं रहे थे जिन पर रंग बिरंगी खट्टी मीठी गोलियाँ सजी हुई थी I किसी में नारंगी तो किसी में गुलाबी ….किसी में गोल गोल पीली-पीली बिंदियाँ के मुंह में पानी आ रहा था और वो अपनी तोतली आवाज़ में चिल्ला रही थी -” ” अंतल,अंतल..मुझे भी ताफी दे दो ना I देखो ना , मेले पाश पैशे भी हैं I ”
पर दुकान में खड़ा भोला नन्ही बिंदियाँ की आवाज़ को सुनकर भी अनसुना कर देता था क्योंकि बिंदियाँ के बापू ने उससे बहुत सारा अनाज उधार ले रखा था I पर ५ साल की बिंदियाँ तो इन बड़ों की दुनियादारी ना जानती थी, वो तो अपनी अठन्नी को रोज रात के तकियें के नीचे रखकर सोती और आँख खुलते ही सामने वाली किराने की दुकान की ओर आशा भरी नज़रों से देखना शुरू कर देती I वो माँ से पूछती , बापू से पूछती और वे दोनों अपनी नज़रें उस मासूम से चुराकर अपनी आँखों में आये बेबसी के आँसूं पोंछकर कहते -” अभी तू नन्ही गुड़िया हैं ना I तेरे दाँत न खराब हो जाए इसलिए तुझे वो टॉफी नहीं देता I ”
गोल-गोल काजल लगी आँखों को हवा में नचाती बिंदियाँ कहती -” हाँ ,देखो तो बापू…मैंने थूब लगद तल दातून ती हैं ….तमक लहे हैं ना मेरे दाँत मोतियों दैथे I मैं अब तभी भी नहीं दाउंगी तौफी लेने I ”
और वो बड़े दुलार से बापू के गले लग जाती I और बापू असहाय सा खुद को बहुत रोकने के बाद भी फफक पड़ता I पर रात होते होते ही बिंदियाँ अपनी दिन की बातें भूल जाती और सपनों में अपनी अठन्नी को मुट्ठी में भींच भोला की दूकान पर कूदते फाँदते पहुँच जाती जहाँ पर भोला एक कोने में मुस्कुरा रहा होता और वो नन्ही नन्ही मुठियों में टॉफी भरकर अपनी फ्रॉक में सारे रंगों की गोलियाँ डाल रही होती I एक दिन भरी दुपहरी में बिंदियाँ दुकान पर दिन भर मर्तबानों के पास खड़ी रही पर भोला का दिल ना पसीजा I वो बस कनखियों से उसे देखता रहा कि थक हार कर वो कब वापस अपने घर चली जाए I जब बिंदियाँ की टाँगे काँपने लगी और चिल्ला चिल्ला कर उसकी आवाज़ बैठने लगी तो वो थकी हारी सामने अपनी झोपड़ी में चली गई I दूसरे दिन बिंदियाँ कमज़ोरी के कारण केवल खिड़की से छनती धूप की रौशनी में चमकते मर्तबान और उनके अन्दर रखी टॉफी देख रही थी कि तभी अचानक उसने देखा कि एक बहुत बड़ा और मोटा काला साँप भोला की दुकान से सटे उसके घर के अन्दर जा रहा था I ये देखकर बिंदियाँ डर के मारे कांपने लगी I पर ये बात वो किसे बताए I माँ बापू तो सुबह ही खेतों में काम करने चले गए थे I बिंदियाँ आज पहली बार अपने हथेली में बिना अठन्नी दबाये, तेज बुखार में लाल मुंह लिये भोला की दूकान की ओर चली गई I सुबह सुबह बोहनी ना होने के कारण भोला वैसे ही चिढ़चिढ़ाया हुआ बैठा था I उसने आव देखा ना ताव , चटाक से बिंदियाँ के कोमल गोरे गाल पर एक चांटा जड़ दिया Iबिंदियाँ फूट-फूट कर रोने लगी और डर के मारे थर-थर काँपने लगी Iउसकी समझ में नहीं आया कि आज उसे मारा क्यों गया I उसका मन हुआ कि वो लौट जाए पर अचानक उसे भोला के बच्चे का ध्यान आया जो घर में अकेला था I वो धीरे से तुतलाते हुए बोली – ” तुम्हाले धर में ताला छांप I ”
“…क्या …? ” भोला उसकी बात को ना समझते हुए चिल्लाकर बोला I
डर के मारे बिंदियाँ ने अपनी दोनों मुट्ठियाँ भोला के आगे कर दी ताकि भोला देख ले कि वो उसके पास टॉफी माँगने नहीं आई I
वो थोड़ी तेज आवाज़ में भोला के घर की ओर इशारा करते हुए बोली-” तुम्हाले धर में ताला छांप I ”
:अरे , ये तुम्हारे घर में काला साँप कह रही हैं I ” दुकान पर खड़े दो लोग बोले
ये सुनते ही भोला हवा की गति से अन्दर भागा जहाँ पर उसका दो साल का बच्चा ज़मीन पर अकेला बैठा था और उसके बगल में बड़ा सा फ़न फैलाए काला कोबरा उसे बस डसने ही जा रहा था I
भोला ने तुरंत बगल में पड़ा लकड़ी का स्टूल उठाकर साँप पर दे मारा जिससे दर्द के मारे बिलबिलाता हुआ साँप वहाँ से चला गया I
भोला ने माथे का पसीना पोंछते हुए बच्चे को गोद में उठाया और हवा की गति से बाहर आ गयाI
बाहर आकर देखा तो बिंदियाँ वहाँ से जा चुकी थी I धनिया ने तुरंत अपने नौकर से कहकर सारे मर्तबान उठाए और दौड़ पड़ा बिंदियाँ के घर की ओरI
उसने देखा कि दरवाजे खुले हुए थे ओर बिंदियाँ दीवार के एक कोने में दुबकी सिसकारियाँ भर रही थी I भोला ने अपने नौकर के साथ मिलकर सारे मर्तबान उसके पास रख दिए उसके पैरों मैं गिरकर भरे गले से माफ़ी मांगते हुए बोला- ” बिटियाँ, ई सारी गोलियाँ अब तुम्हार हैं और जब तक हम जिन्दा हैं,तुमको एको पैसा देने की जरुरत नहीं हैं I ”
बिंदियाँ मुस्कुरा उठी और उसकी आँखों में मर्तबान के अन्दर की रंबिरंगीटॉफी के रंग इन्द्रधनुष बनकर छा गए I उसने काँपते हाथों से मर्तबान खोला और मुंह में एक पीली गोली डालते हुए मुस्कुराकर ऑंखें बंद कर ली
डॉ. मंजरी शुक्ला