मुक्तक/दोहा

मुक्तक

सतरंगी परिधान पहनकर, इन्द्रधनुष से लगते हो,
तीखी चितवन, होंठ लरजते, नैनों से कुछ कहते हो।
ऐसा लगता घनघोर घटा, नभ में बिजली चमक रही,
बांसुरी की भाषा से ही, चैन दिलों का हरते हो।

डॉ अ कीर्तिवर्धन