यहीं कहीं
यहीं कहीं !
सत्य की डगर कठिन है
और सुनसान भी
कोई साथ नहीं मिलता
बंट जाता है, अपना आप भी,
खेमों में
भ्रमित करने लगते हैं
अपने ही,
दिल और दिमाग़ भी।
दिल साहसी है और
दिमाग़ चतुर
दिमाग़ कहता है
पागल हुए हो क्या?
और दिखाता है रास्ते
निकल भागने के
मुहैया करवाता है तर्क
और बताता है समझदारी के
सारे उपाय भी।
दिल कहता है
यह प्रमाद है, छोड़ो इसे
और सत्य का वरण करो
और देखो,
अकेले नहीं हो तुम
कोई और भी है,
यहीं कहीं
तुम्हारे ही आस पास।
– बलवंत सिंह