लघुकथा : अवतार
आफिस में बैठा, मैं देश के प्रतिष्ठित सरकारी इंजिनियरिंग कालेज में शिक्षक पद पर हुआ मेरा नियुक्ति पत्र पढ ही रहा था कि मोबाइल बजा, उधर से पिताजी मुझे शुभकामना दे रहे थे कि “मधु ने बेटी को जन्म दिया है, मधु और बेटी कुशल मंगल है” यह सुनकर मेरी खुशी का ठिकाना न रहा फिर नियुक्ति पत्र की बात बताने पर पिताजी दोबारा बधाई देते हुए बोले, “वाह बेटा सुना था कि भगवान किसी अच्छे कार्य करने हेतु अवतार लेते हैं, आज इन आँखों ने देख भी लिया, बेटा माँ सरस्वती हमारे यहाँ अवतरित हुई और तुमने सरकारी नौकरी की खबर सुनाई ” चल फोन रखता हूं मुझे तेरी माँ और मधु को तेरी खुशखबरी भी तो सुनानी है।
पिताजी से सरस्वती शब्द सुनकर, मन ही मन में पिताजी की सकारात्मक सोच को धन्यवाद दिया कि उन्होंने बेटी को लक्ष्मी का अवतार न मान माँ सरस्वती का आशीर्वाद माना, यही सोच कर मैंने दिल ही दिल में बेटी का नाम “प्रज्ञा” रख, आफिस से हास्पिटल के लिए चल दिया.
— संयोगिता शर्मा